काम करने पर भी उसका बोझ न लगे, यह अनासक्ति का रूप है।
प्रतिभा नाम की कोई चीज़ नहीं होती है। दबाव होता है।
चीज़ों पर हम दबाव न डालें, हर चीज़ को अपने मुक़र्रर वक़्त पर आने दें, अपने निराले तरीक़े से, अपनी लयों को हमारी लयों में विलीन करते हुए।
जब काम बहुत है और समय कम है, तो मनुष्य क्या करे? धैर्य रखे, और जो ज़्यादा उपयोगी माने उसे पूरा करे और बाक़ी ईश्वर पर छोड़ दे। दूसरे रोज़ ज़िंदा होगा तो जो रह गया है उसे पूरा करेगा।
समाज का बीहड़ हमें हमेशा इतना डराए रखता है कि हम बग़ैर चौकन्ना हुए कभी कुछ कह नहीं सकते।
किसी न किसी प्रकार के दबाव का होना आवश्यक है।