दो पृष्ठभूमियाँ—भारतीय और अँग्रेज़ी
भारत में अगस्त सन् 1942 में जो कुछ हुआ, वह आकस्मिक नहीं था। वह पहले से जो बहुत कुछ होता आ रहा था उसकी चरम परिणति थी। इसके बारे में आक्षेप, आलोचना और सफ़ाई के रूप में बहुत कुछ लिखा जा चुका है और बहुत सफ़ाई दी जा चुकी है। फिर भी इस लेखन में से असली बात
जवाहरलाल नेहरू
भारतवर्ष की उन्नति कैसे हो सकती है?
आज बड़े आनंद का दिन है कि छोटे से नगर बलिया में हम इतने मनुष्यों को एक बड़े उत्साह से एक स्थान पर देखते हैं। इस अभागे आलसी देश में जो कुछ हो जाए, वही बहुत है। बनारस ऐसे-ऐसे बड़े नगरों में जब कुछ नहीं होता तो हम यह न कहेंगे कि बलिया में जो कुछ हमने
भारतेंदु हरिश्चंद्र
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