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मातृभाषा पर उद्धरण

मातृभाषा किसी व्यक्ति

की वह मूल भाषा होती है जो वह जन्म लेने के बाद प्रथमतः बोलता है। यह उसकी भाषाई और विशिष्ट सांस्कृतिक पहचान का अंग होती है। गांधी ने मातृभाषा की तुलना माँ के दूध से करते हुए कहा था कि गाय का दूध भी माँ का दूध नहीं हो सकता। कुछ अध्ययनों में साबित हुआ है कि किसी मनुष्य के नैसर्गिक विकास में उसकी मातृभाषा में प्रदत्त शिक्षण सबसे महत्त्वपूर्ण होता है। इस चयन में मातृभाषा विषयक कविताओं को शामिल किया गया है।

हमें अंग्रेज़ी की आवश्यकता है, किंतु अपनी भाषा का नाश करने के लिए नहीं।

महात्मा गांधी

हमें अँग्रेज़ी की आवश्यकता है, किंतु अपनी भाषा का नाश करने के लिए नहीं।

महात्मा गांधी

हम तो भारतीय भाषाओं का पढ़ाना आवश्यक इसलिए मानते हैं कि अपनी भाषा के ज्ञान के बिना कोई सच्चा देशभक्त बन ही नहीं सकता। मातृभाषा के ज्ञान के बिना कोई सच्चा देशभक्त बन ही नहीं सकता। मातृभाषा के ज्ञान के बिना हमारे विचार विकृत जाते हैं और हृदय से मातृभूमि का स्नेह जाता रहता है। भारत के साहित्य और धर्मों को विदेशी भाषा के माध्यम से कभी नहीं समझा जा सकता।

महात्मा गांधी

द्राविड़स्तान की मातृभाषा तामिल या तेलगू बनी रहनी चाहिए, मगर वहाँ के लोगों का धर्म या फ़र्ज़ यह हो जाता हैं कि वे जितनी जल्दी से हिंदुस्तानी सीख सकें, सीख लें।

महात्मा गांधी

यह कितने दुःख की बात है कि हम स्वराज्य की बात भी पराई भाषा में करते हैं?

महात्मा गांधी

अँँग्रेज़ी हमारी राष्ट्रभाषा नहीं बन सकती। वह दुनिया की भाषा या व्यापार की भाषा रह सकती है।

महात्मा गांधी

मातृभाषा का अनादर माँ के अनादर के बराबर है। जो मातृभाषा का अपमान करता है वह स्वदेशभक्त कहलाने लायक नहीं।

महात्मा गांधी

अहंता और ममता के नाश से सर्वथा अहम्-विहीन होने पर जब जीव स्वरूपस्थ हो जाता है तो उसे कृतार्थ कहा जाता है।

वल्लभाचार्य

यदि हम मातृभाषा की उन्नति नहीं कर सके और हमारा यह सिद्वांत रहे कि अँग्रेज़ी के ज़रिए ही हम अपने ऊँचे विचार प्रकट कर सकते हैं और उनका विकास कर सकते हैं तो इसमें ज़रा भी शक नहीं कि हम सदा के लिए ग़ुलाम बने रहेंगे। जब तक हमारी मातृभाषा में हमारे सारे विचार प्रकट करने की शक्ति नहीं जाती और जब तब वैज्ञानिक विषय मातृभाषा में नहीं समझाए जा सकते, तब तक राष्ट्र को नया ज्ञान नहीं मिल सकेगा।

महात्मा गांधी

जो मातृभाषा की अवगणना करता है, वह अपनी माता करता है।

महात्मा गांधी

यदि आप मातृभाषा की सेवा नहीं करते तो स्वतंत्रता के लिए अयोग्य ही हैं। आपका मस्तक यदि अपनी भाषा के सामने भक्ति से झुक जाए, तो फिर वह कैसे उठ सकता है?

वल्लथोल नारायण मेनन

मौन उसकी मातृ-भाषा हो गया है।

ओलिवर गोल्डस्मिथ
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मातृभाषा के विकास के लिए अँग्रेज़ी भाषा की जानकारी की नहीं, मातृभाषा के प्रेम की, उसके प्रति श्रद्धा की ज़रूरत है।

महात्मा गांधी

जनभाषा पर कुछ भी कहने के पहले यह भी ध्यान रखना चाहिए कि वह बहता नीर है। केवल सामाजिक संबंधों से ही उसे जाना और पहचाना जा सकता है और विवेकपूर्ण संतुलन से ही उसे काव्य का समर्थ माध्यम बनाया जा सकता है।

त्रिलोचन

अपनी भाषा हमें ताक़त देती है।

स्वदेश दीपक