श्रीनरेश मेहता के उद्धरण

व्यक्ति का मन भी अजीब है कि वह अस्वीकृति या निषेध की ओर ही भागता है।
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संबंधित विषय : अवसाद
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मनुष्य वह कोई हो; यही सोचता है कि परिवर्तन, बाधाएँ, अवरोध, पतन आदि सब दूसरों के लिए ही हैं।
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संबंधित विषय : जीवन
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दुःख उठाने वाला प्रायः टूट जाया करता है, परंतु दुःख का साक्षात् करने वाला निश्चय ही आत्मजयी होता है।
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सच तो यह है कि समय अपने बीतने के लिए किसी की भी स्वीकृति की प्रतीक्षा नहीं करता।
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स्त्री और सब कुछ भूल सकती है, परंतु विवाह के तत्काल बाद जो उसे एकांत-व्यवहार पति के द्वारा मिलता हे वह अमिट होता है।
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अनंत के सापेक्ष में समय की संज्ञा, काल है तथा देश के सापेक्ष में काल की संज्ञा, समय है।
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दुःख उठाना एक बात है और दुःख का साक्षात् करना सर्वथा भिन्न है।
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संबंधित विषय : दुख
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यह सापेक्ष समय जब बीतता है तो हमें वैसे ही तराशता चलता है जैसे कि जल अपनी मसृणता में भी, कैसी ही चट्टान क्यों न हो, शताब्दियों तक टकराते-टकराते अंततः ढहा कर रख देता है।
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कोई नहीं जानता कि आदिम प्रकाश का वह प्रथम, बीज-ज्योति-कण या समय का वह प्रथम बीज-क्षण इतने गणनातीत वर्षों के बीत जाने पर भी महाज्रोति या महाकाल तक पहुँचा है कि नहीं।
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जीवन या यथार्थ को जब तक रचने का भाव लेखक में नहीं होगा, तब तक उस लिखने का कोई अर्थ ही नहीं है।
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सामान्य जीवन में बहुत बुरा जिस प्रकार असहनीय होता है, उसी प्रकार बहुत अच्छा होना भी कष्टदायक ही होता है।
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विवेक के कारण अनात्म होते ही आप ‘पुरुष’ हो जाते हैं और तब ‘इच्छा’ आपकी इच्छा पर निर्भर होने लगती है।
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लेखक रचता है इसीलिए वह कथा-सृष्टा है, मात्र प्रस्तुत नहीं करता इसीलिए वह कथा-वाचक नहीं है।
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संबंधित विषय : सृजन
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इस्लाम ने भारतीयता की स्थूलता को एक हज़ार वर्ष में छिन्न-भिन्न किया तो उसे ही सूक्ष्म स्तर पर पहले ईसाइयत ने और बाद में साम्यवादी-दर्शन ने गत पचास वर्षों में संपन्न किया।
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देश-कालातीत इच्छाओं के वृत्तों की टकराहट ही है जो वस्तुतः पुरुषार्थों की स्फीति है।
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तत्त्व, अंश या अंशी को नहीं; संपूर्ण सामरस्य को लक्ष्य में रखता है।
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संबंधित विषय : पृथ्वी
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अनात्म होने का अर्थ ही है ‘पुरुष’ होना। इच्छा या प्रकृति आपको माध्यम तभी तक बना सकती है जब तक आप ‘पुरुष’ नहीं हैं।
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संबंधित विषय : आत्म
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जिस दिन सब समेटना होता है, उसे तांडव या महारास या प्रलय कह दिया जाता है।
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संबंधित विषय : हिंसा
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इतिहास, सभ्यता, संस्कृति, धर्म, राजनीति सभी तो स्फीति हैं।
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संबंधित विषय : संसार
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किसी के लिए जीवन भर भाषा, मात्र गाली होती है तो किसी के लिए भाषा मंत्र होती है।
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संबंधित विषय : भाषा
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जो जितना ही संवेदनशील और संस्पर्शी व्यक्ति होता है, उसके लिए जीवन प्रत्यक्ष से अधिक अप्रत्यक्ष होता है।
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संबंधित विषय : जीवन
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जीवन, मिल के बिने कपड़े की तरह समान-सपाट चिकना नहीं होता; बल्कि उसकी प्रकृति एवं पद्वति खुरदुरी खादी से अधिक मिलती है।
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संबंधित विषय : जीवन
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शांति के लिए ‘स्वाहा’ उच्चारण के साथ दी गई एक आहुति संपूर्ण सृष्टि के लिए कितनी मांगलिक होती है, इसे कभी मानवेतर सृष्टि में पैठ कर कोई देखे, तभी समझा जा सकता है।
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संबंधित विषय : शांति
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घटना से अधिक से अधिक उसकी संभानाएँ मन को अधिक शंकालु बनाती है।
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बिंदु जितना सक्रिय होगा, परिधि उतनी ही विशालतर होती जाएगी।
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संबंधित विषय : अंतरिक्ष
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इच्छा, वृत्त को न केवल जन्म ही देती है बल्कि अग्रसर होते हुए विकास, फैलाव चाहती है; परंतु विवेक, वृत्त को समेटने के लिए कहता है ताकि अन्य के लिए प्रति-वृत्त न बने।
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संबंधित विषय : इच्छा
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घोर प्रकाश और घोर अंधकार नेत्रों के लिए जिस प्रकार अदर्शित होते हैं, उसी प्रकार दूसरे इंद्रिय-अनुभव भी हैं।
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