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घास पर उद्धरण

प्रकृति, उर्वरता-अनुर्वरता,

जिजीविषा आदि विभिन्न प्रतीकों के रूप में घास कविता में उगती रही है।

हे राजिया! यदि सिंह मर भी जाए तो भी वह मिट्टी या घास नहीं खाता।

कृपाराम खिड़िया
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