घास पर उद्धरण
प्रकृति, उर्वरता-अनुर्वरता,
जिजीविषा आदि विभिन्न प्रतीकों के रूप में घास कविता में उगती रही है।

हे राजिया! यदि सिंह मर भी जाए तो भी वह मिट्टी या घास नहीं खाता।
जिजीविषा आदि विभिन्न प्रतीकों के रूप में घास कविता में उगती रही है।
हे राजिया! यदि सिंह मर भी जाए तो भी वह मिट्टी या घास नहीं खाता।