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धुआँ पर उद्धरण

आकाशगंगा चिकने आसमान में बारूद के धुएँ के निशान की तरह है।

सामंथा हार्वे

हे अर्जुन! सहज कर्म दोषयुक्त होने पर भी त्यागना नहीं चाहिए क्योंकि धुएँ से अग्नि के सदृश सब ही कर्म किसी किसी दोष से आवृत होते हैं।

वेदव्यास

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