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नौकरी पर कविताएँ

कवि के संघर्ष में उसका

आर्थिक संघर्ष एक प्रमुख उपस्थिति है और इसी से जुड़ा है फिर रोज़गारी-बेरोज़गारी का उसका अपना विशिष्ट दुख। प्रस्तुत चयन ऐसी ही कविताओं से किया गया है।

अगले सबेरे

विष्णु खरे

शराब के नशे में

अच्युतानंद मिश्र

सेवानिवृत्ति

अविनाश मिश्र

आरर डाल

त्रिलोचन

चौराहा

राजेंद्र धोड़पकर

बच्चे

अमिताभ

नौकरी न होने के दिनों में

घनश्याम कुमार देवांश

सुख है

अविनाश मिश्र

चाकरी में स्वप्न पाले कौन

कृष्ण मुरारी पहारिया

हाथी

वीरेन डंगवाल

बीमा एजेंट

सौरभ राय

नौकरी

प्रयाग शुक्ल

नौकरी एक चुड़ैल

घनश्याम कुमार देवांश

खूँटा

शुभम् आमेटा

भला लगता है

रमेश रंजक

पिंजड़ा

विनोद दास

शव ढोने वाले लोग

रमाशंकर सिंह

एक घंटे का समय

सारुल बागला

रोटी की प्रत्याशा में

मुकेश निर्विकार

सरूली

महेश चंद्र पुनेठा

संघर्ष

अरुण देव

अन्ना फिरा मैं

केशव तिवारी

लगना

मलयज

हीरोइन

हरि मृदुल

कबूतर

नवीन रांगियाल

चौकीदार

अजय प्रधान

रंजनजी मुसकाय

राकेश रंजन

दफ़्तर

हरे प्रकाश उपाध्याय

कमाया घंटा

राकेश रंजन

बेरोज़गारी

कुमार अनुपम

बुनकर

रामाज्ञा शशिधर

नौकरी

मिथिलेश श्रीवास्तव

कोटा

निशांत

इस साल

सुनीता जैन

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