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पर्वत पर कविताएँ

पर्वत भू-दृश्य भारतभूमि

की प्रमुख स्थलाकृतिक विशेषताओं में से एक है जो न केवल स्थानीय जीवन और संस्कृति पर अपना विशिष्ट प्रभाव रखता है, बल्कि समग्र रूप से भारत के सांस्कृतिक अनुभवों में भी अपना योगदान करता है। इस चयन में पर्वत-पहाड़ विषयक कविताओं का संकलन किया गया है।

आत्म-मृत्यु

प्रियंका दुबे

पहाड़ पर लालटेन

मंगलेश डबराल

पहाड़ पर चढ़ने के लिए

पद्मजा घोरपड़े

सुनहरे पहाड़

तादेऊष रूज़ेविच

शिमला

अखिलेश सिंह

नदी और पहाड़

शिवानी कार्की

खोज

फेदेरीको गार्सिया लोर्का

गिरिवर भाई

शैलेंद्र कुमार शुक्ल

शहर फिर से

मंगलेश डबराल

शिखरों का समवेत गान

निकोलाई असेयेव

स्वप्न

सौरभ अनंत

जिप्सी लड़की

अवधेश कुमार

अकेला पहाड़

सौरभ अनंत

आँख भर देखा कहाँ

जगदीश गुप्त

खिलखिलाती

नंदकिशोर आचार्य

पहाड़ से मतलब

प्रमोद कौंसवाल

दीदियों और भुलियों

राजेश सकलानी

तुम देखना

शैलेंद्र कुमार शुक्ल

जोशीमठ में दरारें

खेमकरण ‘सोमन’

दशरथ माँझी

निर्मला गर्ग

पत्थर

शरद बिलाैरे

विस्मृत पहाड़

राजेश सकलानी

पहाड़

कुमार मुकुल

जहाँ बर्फ़ गिरती होगी

अंकिता शाम्भवी

पहाड़ की शाम

पवन चौहान

भीगना

अमेय कांत

पहाड़-4

ब्रजरतन जोशी

या

शैलेय

वर्षा वसंत की

नंदकिशोर आचार्य

प्योली और चिड़िया

अनिल कार्की

एक ही सपना

सुधा उपाध्याय

नदी, पहाड़ और बाज़ार

जसिंता केरकेट्टा

दुखों से ऊँचा देवदार

प्रियंका दुबे

पहाड़ और दादी

कल्पना पंत

ऊँचाई

अटल बिहारी वाजपेयी

नदी का आवेग

जगदीश गुप्त

चाँदनी के पहाड़

दिनेश कुमार शुक्ल

काफल पाको

मनोहर श्याम जोशी

छुअन

मुदित श्रीवास्तव

पहाड़ और बारिश

कपिल भारद्वाज

सर्दियों में

कल्पना पंत