
समय एक ऐसा कारक है जो बिना उत्तर के भी आगे जाकर किसी प्रश्न की तीव्रता को कम कर सकता है।

सवाल सिर्फ़ अतीत को मिटाने का ही है।

जो प्रश्न हमेशा मेरे दिमाग़ में घूमता रहता है, वह यह है : मैं किस चीज़ में बेहतर हूँ। क्या मैं किसी भी तरह से किसी भी काम के लिए उपयोगी नहीं हूँ।

उद्धरण के होने से पहले प्रश्न का आना नहीं होता।

इतिहास का अर्थ है मनुष्य जाति के सम्मुख उपस्थित हुए प्रश्नों का उल्लेखन।

अस्तित्व और अनस्तित्व—यही तो प्रश्न है।

कुछ और है, कुछ और है। पर क्या है? सीमाबद्ध मस्तिष्क की तरंगें पछाड़ खा-खाकर तीर पर सिर मार रही हैं—कुछ और है पर क्या है?

मेरा विश्वास है कि मनुष्य और मनुष्य के बीच का हर प्रश्न, धार्मिक प्रश्न है और हर सामाजिक अपराध नैतिक अपराध है।