अश्वघोष के उद्धरण



दुःख के प्रतिकार से थोड़ा दुःख रहने पर भी मनुष्य सुख की कल्पना कर लेता है।

इस प्रकार संसार में धन पाकर जो लोग उसे मित्रों और धर्म में लगाते हैं, उनके धन सारवान हैं, नष्ट होने पर अंत में वे धन ताप नहीं पैदा करते।
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तृष्णावान् व्यक्ति का मन धन-संपत्ति में और मूर्ख का काम-सुख में रमता है। जो सज्जन है वह ज्ञान द्वारा भोग-इच्छा को जीतकर शांति में रमता है।

बुढ़ापा, रोग और मृत्यु इस संसार का महाभय है। ऐसा कोई देश नहीं है जहाँ लोगों को यह भय नहीं होता हो।



मन से अब्रह्मचारी रहते हुए तुम्हारा यह ब्रह्मचर्य कैसा?
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संबंधित विषय : ब्रह्म
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यह स्नेहमयपाश ज्ञान और रूखेपन के बिना नहीं तोड़ा जा सकता है।
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संबंधित विषय : ज्ञान
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जो घर से निकल गया है किंतु जिसका काम-राग नहीं निकला है, जो काषाय वस्त्र पहनता है किंतु जिसका कषाय नष्ट नहीं हुआ है, जो भिक्षा पात्र धारण करता है किंतु जो सद्गुणों का पात्र नहीं हुआ है, वह भिक्षु-वेष धारण करता हुआ भी न गृहस्थ है, न भिक्षु।
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यह संसार सदा ही शत्रु- स्वरूप, क्षणिक, दुःखजनक विषयभोगों में आसक्त रहता है। यह अविनाशी सुख को पहचानता ही नहीं है।
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बहुत बार भोजन करने से शरीर की पुष्टि, कांति, उत्साह, प्रयोग और बल में कमी आती है।
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संबंधित विषय : देह
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अतः अपनी शक्ति को देखते हुए भोजन करना चाहिए मान के वश होकर भी न बहुत अधिक और न बहुत कम ही खाना चाहिए।
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यदि अधिक भोजन किया जाए तो वह प्राणवायु और अपान वायु में बाधक होता है, आलस्य और नींद लाता है तथा पराक्रम को नष्ट करता है।
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संबंधित विषय : नींद
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