Font by Mehr Nastaliq Web

तर्क-वितर्क पर उद्धरण

तर्क और आस्था की लड़ाई हो रही थी और कहने की ज़रूरत नहीं कि आस्था तर्क को दबाए दे रही थी।

श्रीलाल शुक्ल

बहस के स्वरूप को लेकर जितनी बहस संस्कृत के शास्त्रकारों ने की है, उतनी कदाचित् संसार की किसी अन्य भाषा के साहित्य में नहीं मिलेगी।

राधावल्लभ त्रिपाठी

किसी स्त्री ने न्यायसूत्र या वात्स्यायनभाष्य जैसा कोई शास्त्रग्रंथ रचा हो, ऐसा प्रमाण नहीं मिलता। उपनिषत्काल के बाद शास्त्रार्थ में स्त्री विस्मृत हाशिए पर है। किसी कोने से उसकी आवाज सुनाई देती है, पर वह जब कभी अपने अवगुंठन से बाहर निकल कर आती है तो एक विकट चुनौती सामने रखती है और दुरंत प्रश्न उठाती है।

राधावल्लभ त्रिपाठी

दर्शन तर्क-वितर्क कर सकता है और शिक्षा दे सकता है, धर्म उपदेश दे सकता है और आदेश दे सकता है; किंतु कला केवल आनंद देती है और प्रसन्न करती है।

सर्वेपल्लि राधाकृष्णन

द्रौपदी के द्वारा जो शास्त्रार्थ उठाया गया, उसका एक स्पष्ट निर्णय यह भी है कि पाप या अन्याय करने वाला ही पापी नहीं होता, उस पाप या अन्याय पर चुप रहनेवाला भी पापी होता है।

राधावल्लभ त्रिपाठी

कुछ शास्त्रार्थ ऐसे भी हुए जिनमें स्त्री उपस्थिति की आँच अभी भी मंद नहीं हुई है। यह भी बहुधा हुआ है कि स्त्री अकेली होने के बावजूद, अपनी प्रखरता और तेजस्विता में पुरुष समाज को हतप्रभ कर देती है।

राधावल्लभ त्रिपाठी

भारतीय समाज मूलतः तर्कप्रवण और वादोन्मुख लोगों का समाज है।

राधावल्लभ त्रिपाठी

भद्र या शिक्षित समाज में महिलाएँ पुरुषों के बीच बहस के लिए आती रही हैं और वे पुरुषों के आधिपत्य के बीच अपनी जगह भी बनाती रही हैं।

राधावल्लभ त्रिपाठी

धृतराष्ट्र ने जो द्रौपदी का सम्मान किया, और युधिष्ठिर को उनका राज्य ससम्मान लौटा दिया—उसके पीछे द्रौपदी के शास्त्रार्थ की भूमिका थी।

राधावल्लभ त्रिपाठी

महाभारत में वर्णित पात्रों में भारतीय इतिहास की सबसे तेजस्विनी नारियाँ भी हैं।

राधावल्लभ त्रिपाठी

जुए में दाव पर लगाई गई और राजसभा में ज़बरदस्ती घसीटकर लाई गई द्रौपदी; भीष्म आदि सभासदों से जो संवाद करती है, उसमें एक शास्त्रार्थ घटित होता है, जो वास्तव में इस देश के इतिहास में सबसे बड़े शास्त्रार्थों में एक है।

राधावल्लभ त्रिपाठी

यों तो पूरा महाभारत ही मनुष्यों के गहरे संकटों से गुजरने और उनसे उबरने की महागाथा है, पर उसका द्यूतपर्व ऐसा महाख्यान है, जिसमें पुरुष समाज के बीच, पुरुष के कारण और पुरुषों के द्वारा अत्यंत दारुण स्थिति में पहुँचा दी गई स्त्री, अपनी शास्त्रार्थ की प्रतिभा के द्वारा पुरुष की सत्ता को ज़बरदस्त चुनौती देती है।

राधावल्लभ त्रिपाठी

गार्गी ब्रह्मवादिनी थी। उपनिषदों में ही स्त्रियाँ ब्रह्मवादिनी हुआ करती थीं।

राधावल्लभ त्रिपाठी

'The High Cast Hindu Women' वास्तव में एक स्त्री की ओर से शास्त्रार्थ का प्रस्ताव है।

राधावल्लभ त्रिपाठी

गार्गी और मैत्रेयी का विलक्षण बौद्धिक व्यक्तित्व और अपने समय के सबसे बड़े ज्ञानी के साथ संवाद कर सकने का उनका साहस—दोनों पूरी भारतीय शास्त्रार्थ परंपरा के इतिहास में बेजोड़ हैं।

राधावल्लभ त्रिपाठी

अनुमान का साधक हेतु है और जिसका अनुमान करना है वह साध्य है।

राधावल्लभ त्रिपाठी

अतिशय तर्क-वितर्क से बुद्धि तेजस्वी नहीं बनती, तीव्र भले ही होती हो।

महात्मा गांधी

अच्छी और सार्थक बहस की गुंजाईश बनी रहे; यह किसी भी समाज की जीवंतता की पहचान है, इसके विपरीत निरर्थक बहसों का जारी रहना उसकी रूग्णता का द्योतक हो सकता है।

राधावल्लभ त्रिपाठी

शंकरदिग्विजय के पश्चात् शास्त्रार्थ के क्षेत्र में सबसे बड़ी दिग्विजय यात्रा कदाचित् दयानंद की रही है। दयानंद के दिग्विजय अभियान में स्त्री की सहभागिता नहीं है।

राधावल्लभ त्रिपाठी

वादी प्रतिवादी को समझाता है, इस समझाने के लिए जिस वाक्य का प्रयोग वह करता है, उसे अनुमान वाक्य कहते हैं।

राधावल्लभ त्रिपाठी

वितंडा छीछालेदर है।

राधावल्लभ त्रिपाठी

संधाय संभाषा खुली चर्चा है, जो संधि की स्थिति में अर्थात् सौहार्दपूर्ण या सद्भावनामय वातावरण में की जाती है।

राधावल्लभ त्रिपाठी

विग्रह्य-संभाषा विवाद है, जिसमें हार-जीत का भी महत्त्व होता है।

राधावल्लभ त्रिपाठी

साध्य का कथन प्रतिज्ञा है।

राधावल्लभ त्रिपाठी

वाद शब्द का प्रयोग सिद्धांत या मत के अर्थ में भी होता रहा है

राधावल्लभ त्रिपाठी

आयुर्वेदशास्त्र के आद्य आचार्य चरक ने बहस के लिए संभाषा शब्द का प्रयोग किया है।

राधावल्लभ त्रिपाठी