माओ ज़ेडॉन्ग के उद्धरण

मनुष्य का सामाजिक जीवन ही साहित्य व कला का एकमात्र स्रोत होता है तथा उसकी विषय-वस्तु; कला-साहित्य के मुक़ाबले अतुलनीय रूप से अधिक सजीव और समृद्ध होती है, फिर भी लोग केवल जीवन को देखकर ही संतुष्ट नहीं हो सकते बल्कि साहित्य और कला की माँग भी करते हैं।

अगर आप जनता की भाषा में बहुतेरी बातों को समझ ही न पाएँ, तो भला साहित्यिक और कलात्मक सृजन की बात कैसे कर सकेंगे?
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हमारे पूर्ववर्ती लोगों और विदेशियों की कृतियों का आलोचनात्मक विवेचन किए बिना उन्हें अपनी कृतियों में रोप देना अथवा उनका अनुकरण करना कला-साहित्य के क्षेत्र में एक अत्यंत असृजनशील और हानिकारक कठमुल्लावाद है।

जो कोई भी अपने आपको मार्क्सवादी क्रांतिकारी लेखक कहता हो और ख़ासतौर से जो लेखक कम्युनिस्ट पार्टी का सदस्य हो—उसे मार्क्सवाद-लेनिनवाद का ज्ञान अवश्य होना चाहिए। लेकिन इस समय कुछ साथी मार्क्सवाद की बुनियादी धारणाओं से अनभिज्ञ हैं।
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सच्चा मानव-प्रेम सिर्फ़ तभी संभव हो सकता है जबकि सारी दुनिया में वर्गों को ख़त्म कर दिया जाएगा।
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यदि तुम क्रांति का सिद्धांत और विधियों के जिज्ञासु हो तो तुम्हें क्रांति में भाग लेना चाहिए। समस्त प्रामाणिक ज्ञान प्रत्यक्ष अनुभव से उद्भूत होता है।
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किसी देश की भौगोलिक और वायुमंडलीय परिस्थितियों में कोई परिवर्तन न होने पर भी उसके अंदर ज़बरदस्त सामाजिक परिवर्तन हो सकते हैं।

हमें कठिनाइयों को मानना चाहिए, उनका विश्लेषण करना चाहिए और उनके विरुद्ध संघर्ष करना चाहिए। जगत में सीधे मार्ग कहीं नहीं हैं, हमें टेढ़े-मेढ़े मार्ग तय करने के लिए तैयार रहना चाहिए तथा मुफ़्त में सफलता प्राप्त करने का प्रयत्न नहीं करना चाहिए।
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हमारे लेखकों व कलाकारों को अपना साहित्यिक व कलात्मक सृजन-कार्य करना होगा, लेकिन उनका सर्वप्रथम कार्य है जनता को समझना और उसका अच्छी तरह परिचय प्राप्त कर लेना।
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जीवन भी एक अंतर्विरोध है जो ख़ुद वस्तुओं और प्रक्रियाओं में मौजूद होता है और जो लगातार अपने आप उत्पन्न और हल होता रहता है और ज्यों ही यह अंतर्विरोध ख़त्म हो जाता है, त्यों ही जीवन का भी अंत हो जाता है और मृत्यु का आगमन होता है।
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वे कलाकृतियाँ जिनमें कलात्मक प्रतिभा का अभाव होता है, शक्तिहीन होती हैं, चाहे वे राजनीतिक दृष्टि से कितनी ही प्रगतिशील क्यों न हों।
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संबंधित विषय : कला
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जहाँ तक तथाकथित 'मानव-प्रेम' का संबंध है, मानव जाति के वर्गों में विभाजिज हो जाने के बाद से सर्वव्यापी प्रेम जैसी कोई चीज़ नहीं रही।
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जो कला-साहित्य साम्राज्यवादियों के लिए होता है—जैसे चओ-च्वो-रन, चाङ चि-फिङ और उनके समान अन्य लोगों की रचनाएँ—वह देशद्रोही कला-साहित्य कहलाता है।
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विचारधारात्मक रूप में साहित्यिक रचनाएँ और कलाकृतियाँ, मनुष्य के मस्तिष्क पर किसी क़िस्म के सामाजिक जीवन के प्रतिबिंबों की उपज होती हैं।
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जब तक समस्याओं का ढेर नहीं लग जाता और वे बहुत सी गड़बड़ी पैदा नहीं करने लग जातीं, तब तक उन्हें हल करने का प्रयत्न न करना और प्रतीक्षा करते रहना ठीक नहीं। नेताओं को आंदोलन के आगे रहना चाहिए, उसके पीछे नहीं।
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प्रकृति में गति के अनेक रूप विद्यमान हैं : यांत्रिक गति, ध्वनि प्रकाश, ताप, विद्युत, विघटन, संघटन आदि। ये सभी रूप एक-दूसरे पर निर्भर होते हैं, लेकिन मूलवस्तु की दृष्टि से ये एक दूसरे से भिन्न होते हैं।
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भौतिकवादी द्वंद्ववाद के दृष्टिकोण के अनुसार, प्रकृति में परिवर्तनों का मुख्य कारण प्रकृति में मौजूद आंतरिक अंतर्विरोधों का विकास होता है।
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वर्ग-समाज में मानव-स्वभाव का स्वरूप भी वर्गमूलक ही होता है; वर्गों से परे कोई मानव-स्वभाव नहीं होता।
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गति के प्रत्येक रूप में मौजूद विशिष्ट मूलवस्तु उसके अपने विशिष्ट अंतर्विरोध द्वारा निर्धारित होती है—यह बात केवल प्रकृति पर ही नहीं, बल्कि सामाजिक और विचारगत घटनाओं पर भी लागू होती है।
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कला को राजनीति के समकक्ष नहीं रखा जा सकता, और न कलात्मक सृजन व समालोचना की किसी एक पद्धति ही आम विश्व—दृष्टिकोण के समकक्ष रखा जा सकता है।
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सर्वहारा वर्ग में भी बहुत से लोग निम्न-पूँजीपति वर्ग के विचार रखते हैं, तथा किसान और शहरी निम्न-पूँजीपति वर्ग के लोग भी पिछड़े हुए विचार रखते हैं, ये सभी संघर्ष के दौरान उनके लिए एक बोझ हैं।
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हमारे दृष्टिबिंदु से ही किसी ठोस मसले के बारे में हमारे ठोस रुख का जन्म होता है।
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हमारे सभी कार्यकर्ता, चाहे वे किसी भी पद पर क्यों न हों, जनता के सेवक हैं और हमारा हर कार्य जनता की सेवा के लिए है। ऐसी हालत में भला यह कैसे हो सकता है कि हम अपनी किसी भी बुराई को दूर करने की अनिच्छा प्रकट करें?
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इसमें संदेह नहीं कि ऐसा कला-साहित्य भी मौजूद है जो शोषकों और उत्पीड़कों के लिए है। जो कला-साहित्य ज़मींदार वर्ग के लिए होता है, वह सामंती कला-साहित्य कहलाता है।
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जब तक समाज में वर्ग मौजूद हैं, तब तक कम्युनिस्ट पार्टी के भीतर सही विचारों और ग़लत विचारों के बीच के अंतर्विरोध, पार्टी के अंदर वर्ग-अंतर्विरोध को ही प्रतिबिंबित करते रहेंगे।
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बहुत से लेखक व कलाकार आम जनता से अलग-थलग रहते हैं और खोखला जीवन व्यतीत करते हैं, इसलिए यह स्वाभाविक ही है कि जनता की भाषा से अपरिचित हैं। परिणामस्वरूप उनकी रचनाओं में न केवल भाषा की नीरसता मौजूद रहती है बल्कि उनकी ख़ुद की गढ़ी हुई ऐसी अनुपयुक्त अभिव्यक्तियाँ भी होती हैं जो सामान्य रूप से प्रयोग में नहीं आतीं।
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संबंधित विषय : कलाकार
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हमारे वर्तमान दार्शनिक अध्ययन का मुख्य उद्देश्य, कठमुल्लावादी विचार को दूर करना ही होना चाहिए।
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मानव की धारणाओं में पाए जाने वाले प्रत्येक भेद को वस्तुगत अंतर्विरोध के प्रतिबिंब के रूप में देखना चाहिए।
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निजी संपत्ति और सार्वजनिक संपत्ति के बीच की खाई के दो किनारों को मिलाने वाला एक सेतु होता है, जिसे दर्शन-शास्त्र में एकरूपत, या एक-दूसरे में रूपांतर, अथवा अंतर-व्याप्ति कहते हैं।
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जीवन प्रथमतः ठीक इसी बात में निहित है कि एक सजीव वस्तु प्रत्येक क्षण स्वयं वही वस्तु रहते हुए भी कुछ और वस्तु होती है।
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कम्युनिस्टों का कर्तव्य है कि वे प्रतिक्रियावादियों और आध्यात्मवादियों के ग़लत विचारों का भंडाफोड़ कर दें, वस्तुओं में निहित द्वंदात्मकता का प्रचार करें, और इस प्रकार वस्तुओं के रूपांतर की रफ़्तार बढ़ाएँ तथा क्रांति का उद्देश्य को प्राप्त करें।
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संबंधित विषय : साम्यवादी
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हमारे कठमुल्लावादी लोग लेनिन की शिक्षाओं के विरुद्ध चलते हैं; वे किसी भी वस्तु का ठोस विश्लेषण करने में अपने दिमाग़ से काम नहीं लेते, अपने लेखों तथा भाषणों में वे हमेशा घिसी-पिटी शैली का इस्तेमाल करते हैं, जिसमें विषय-वस्तु का बिल्कुल अभाव होता है और इस तरह वे हमारी पार्टी में एक अत्यंत बुरी कार्यशैली को जन्म देते हैं।
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अंतर्विरोध सभी वस्तुओं के विकास की प्रक्रिया में मौजूद है; यह प्रत्येक वस्तु के विकास की प्रक्रिया में शुरू से अंत तक बना रहता है।
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संबंधित विषय : प्रतिरोध
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विपरित तत्त्वों के बीच संघर्ष किसी प्रक्रिया के आरंभ से अंत तक चलता है और एक प्रक्रिया के दूसरी में बदल जाने का कारण होता है, और यह संघर्ष हर जगह मौजूद रहता है तथा इसलिए संघर्ष परिस्थितियों से परे और निरपेक्ष होता है।
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संबंधित विषय : संघर्ष
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जो चीज़ वास्तविक परिवर्तनों में निहित एकरूपता को वैज्ञानिक ढंग से प्रतिबिंबित करती है, वही मार्क्सवादी द्वंद्ववाद है।
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सर्वहारा अधिनायकत्व को अथवा जनता के अधिनायकत्व को मज़बूत बनाना वास्तव में ऐसे अधिनायकत्व को ख़त्म करने और सभी राज्य-व्यवस्थाओं का अंत करने की उच्चतर मंज़िल की ओर बढ़ने के लिए परिस्थितियाँ तैयार करना है।
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संबंधित विषय : समाज
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एकांगीपन का मतलब है समस्याओं को सर्वांगीण रूप से न देखना।
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संबंधित विषय : अकेलापन
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निम्न-पूँजीपति वर्ग में पैदा होने और ख़ुद भी बुद्धिजीवी होने के कारण, बहुत से साथी केवल बुद्धिजीवियों में ही अपने मित्रों की खोज करते हैं तथा उन्हीं का अध्ययन करने और चित्रण करने में अपना ध्यान केंद्रित करते हैं।
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लेनिनवाद, साम्राज्यवाद और सर्वहारा क्रांति के युग का मार्क्सवाद इसीलिए है, क्योंकि लेनिन और स्तालिन ने इन अंतर्विरोधों की सही व्याख्या की है और उन्हें हल करने के लिए सर्वहारा क्रांति के सिद्धांत और कार्यनीति का सही निरूपण किया है।
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संबंधित विषय : लेनिन
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आज जो कुछ सचमुच आम जनता के लिए होता है, वह निश्चयपूर्वक सर्वहारा वर्ग के नेतृत्व में होता है। जो कुछ पूँजीपति वर्ग के नेतृत्व में होता है, वह आम जनता के लिए हरगिज़ नहीं हो सकता।
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संबंधित विषय : उत्पीड़ित लोग
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समाजवाद की परिस्थिति में किसानों की निजी मिलकियत की व्यवस्था समाजवादी कृषि की सार्वजनिक मिलकियत में बदल जाती है; सोवियत संघ में ऐसा हो चुका है और बाक़ी सारी दुनिया में भी ऐसा ही होगा।
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संबंधित विषय : किसान
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समाज के प्रत्येक रुप और चिंतन के प्रत्येक रूप का अपना विशिष्ट अंतर्विरोध होता है और उसकी अपनी विशिष्ट मूलवस्तु होती है।
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संबंधित विषय : समाज
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साम्यवादी लोग बीजों के समान हैं और जनता भूमि के समान है। जहाँ भी हम जाएँ, हमें जनता से घुलना-मिलना चाहिए, उनमें जड़ पकड़नी चाहिए और उनमें फलना फूलना चाहिए।
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संबंधित विषय : जनता
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अंतर्विरोध सार्वभौमिक और निरपेक्ष होता है, वह सभी वस्तुओं के विकास की प्रक्रिया में मौजूद रहता है और सभी प्रक्रियाओं में शुरू से अंत तक बना रहता है।
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संबंधित विषय : प्रतिरोध
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मनुष्य सामान्यीकरण की ओर केवल तभी बढ़ सकता है और वस्तुओं में सामान्य रूप से मौजूद मूलवस्तु को सिर्फ़ तभी जान सकता है जब वह पहले अनेक भिन्न-भिन्न वस्तुओं में से प्रत्येक की विशिष्ट मूलवस्तु को जान ले।
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संबंधित विषय : मनुष्य
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सभी तथाकथित शक्तिशाली प्रतिक्रियावादी काग़ज़ी शेरों से अधिक नहीं हैं, क्योंकि वे अपनी जनता से कटे हुए हैं।
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संबंधित विषय : जनता
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किसी भी समस्या पर विचार करते समय, हमें वास्तविक स्थिति को आधार बनाकर शुरुआत करनी चाहिए—न कि परिभाषाओं को आधार बनाकर।
किसी भी समस्या पर विचार करते समय, हमें वास्तविक स्थिति को आधार बनाकर शुरुआत करनी चाहिए—न कि परिभाषाओं को आधार बनाकर।
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