मनुष्य का सामाजिक जीवन ही साहित्य व कला का एकमात्र स्रोत होता है तथा उसकी विषय-वस्तु; कला-साहित्य के मुक़ाबले अतुलनीय रूप से अधिक सजीव और समृद्ध होती है, फिर भी लोग केवल जीवन को देखकर ही संतुष्ट नहीं हो सकते बल्कि साहित्य और कला की माँग भी करते हैं।
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किसी देश की भौगोलिक और वायुमंडलीय परिस्थितियों में कोई परिवर्तन न होने पर भी उसके अंदर ज़बरदस्त सामाजिक परिवर्तन हो सकते हैं।
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जो कोई भी अपने आपको मार्क्सवादी क्रांतिकारी लेखक कहता हो और ख़ासतौर से जो लेखक कम्युनिस्ट पार्टी का सदस्य हो—उसे मार्क्सवाद-लेनिनवाद का ज्ञान अवश्य होना चाहिए। लेकिन इस समय कुछ साथी मार्क्सवाद की बुनियादी धारणाओं से अनभिज्ञ हैं।
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यदि तुम क्रांति का सिद्धांत और विधियों के जिज्ञासु हो तो तुम्हें क्रांति में भाग लेना चाहिए। समस्त प्रामाणिक ज्ञान प्रत्यक्ष अनुभव से उद्भूत होता है।
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सच्चा मानव-प्रेम सिर्फ़ तभी संभव हो सकता है जबकि सारी दुनिया में वर्गों को ख़त्म कर दिया जाएगा।
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