
प्रभु के प्रति सच्ची भक्ति की प्रतिपत्ति ही जीवन में सच्चे पद की प्राप्ति है। वेद, शास्त्र, पुराण आदि का अध्ययन ही अपने में कोई विशेष पद-प्रद नहीं हो सकता जब तक उनके सारभूत तत्त्व को आत्मसात न कर लिया जाए। धन-दौलत और धनी राजाओं आदि के साथ मैत्री भी अपने में कोई सम्मान की बात नहीं है। जप-तप आदि से प्राप्त अणिमा आदि सिद्धियों से संसार को सताने में भी कोई गौरव की बात नहीं है।