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मैक्सिम गोर्की

1868 - 1936 | निज़हनी नोवगोरोड

समादृत सोवियत लेखक, नाटककार और राजनीतिक विचारक। समाजवादी यथार्थवाद के प्रवर्तक।

समादृत सोवियत लेखक, नाटककार और राजनीतिक विचारक। समाजवादी यथार्थवाद के प्रवर्तक।

मैक्सिम गोर्की के उद्धरण

पृथ्वी स्वयं इस नए जीवन को जन्म दे रही है और सारे प्राणी इस आनेवाले जीवन की विजय चाह रहे हैं। अब चाहे रक्त की नदियाँ बहें या रक्त के सागर भर जाएँ, परंतु इस नई ज्योति को कोई बुझा नहीं सकता।

नवयुग की ज्योति को जो एक बार देख लेता है, उसी को वह पवित्र बनाती हुई जलाने लगती हैं।

धन में बल है सत्य नहीं।

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तुम्हें क्या पता, भूख कैसी होती है? तुम्हें उसकी भय-करता का क्या पता? परंतु वहाँ मनुष्यों के पीछे-पीछे भूत की तरह लगी फिरती है। उन्हें रोटी मिलने की कोई आशा नहीं होती। अस्तु, यह भूख उनकी आत्मा को ही खा जाती है। उनके मुँह पर से मनुष्यता के चिह्न नष्ट हो जाते हैं। वे जीते नहीं। भूख और आवश्यकताओं से धीरे-धीरे घुलते है।

हर आदमी को दुनिया में बूट, जूता या छाता सुलभ नहीं होता परंतु हर आदमी को अपने पड़ोसी से अधिक दिखावा करने का शौक़ होता है।

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