अविनाश मिश्र के बेला
27 अप्रैल 2025
रविवासरीय : 3.0 : इन पंक्तियों के लेखक का ‘मैं’
• विषयक—‘‘इसमें बहुत कुछ समा सकता है।’’ इस सिलसिले की शुरुआत इस पतित-विपथित वाक्य से हुई। इसके बाद सब कुछ वाहवाही और
20 अप्रैल 2025
रविवासरीय : 3.0 : हिंदी में विश्व कविता का विश्व
• गत सौ-सवा वर्षों की हिंदी कविता पर अगर एक सरसरी तब्सिरा किया जाए और यह जाँचने-जानने के यत्न में संलग्न हुआ जाए कि हमार
13 अप्रैल 2025
रविवासरीय : 3.0 : ‘बुद्धि की आँखों में स्वार्थों के शीशे-सा!’
• गत बुधवार ‘बेला’ के एक वर्ष पूर्ण होने पर हमने अपने उद्देश्यों, सफलताओं और योजनाओं का एक शब्दचित्र प्रस्तुत किया। इस श
आज ‘बेला’ का जन्मदिन है
आज ‘बेला’ का जन्मदिन है। गत वर्ष वे देवियों के दिन थे, जब हिन्दी और ‘हिन्दवी’ के व्यापक संसार में ‘बेला’ का प्राकट्य
रविवासरीय : 3.0 : एक सुझाववादी का चाहिएवाद
• ‘नये शेखर की जीवनी’ शीर्षक कथा-कृति के प्रथम खंड में इन पंक्तियों के लेखक ने एक ऐसे समीक्षक का वर्णन किया है; जिसके कम
रविवासरीय : 3.0 : एक समय की बात है और नहीं भी...
• गत ‘रविवासरीय’ पढ़कर मेरे बचपन के दोस्त अनूप सोनकर ने कानपुर से मुझे फ़ोन पर एक कहानी सुनाई। उसे भी नहीं पता कि यह कहानी
रविवासरीय : 3.0 : इस पर ध्यान दें, भले ही आप अनुभवी शराबी हैं
• प्रश्न यह था कि क्या शराब पीने वालों को उन्हें अपने साथ बैठाना चाहिए, जो शराब नहीं पीते? बैठक में चार पीढ़ियों के चार व
रविवासरीय : 3.0 : कभी-कभी लगता है कि गोविंदा भी कवि है
• यहाँ प्रस्तुत मज़मून लगभग चार वर्ष पुराना है, लेकिन इसके नायक से संबंधित समाचार रोज़-रोज़ कुछ इस क़दर आते हैं कि यह रोज़-रो
रविवासरीय : 3.0 : ‘चारों ओर अब फूल ही फूल हैं, क्या गिनते हो दाग़ों को...’
• इधर एक वक़्त बाद विनोद कुमार शुक्ल [विकुशु] की तरफ़ लौटना हुआ। उनकी कविताओं के नवीनतम संग्रह ‘केवल जड़ें हैं’ और उन पर एक
रविवासरीय : 3.0 : आधा सुचिंतित, आधा सुगठित, बाक़ी तार्किक
• गत रविवासरीय पढ़कर हिंदी-जगत में संभव हुए भगदड़रत व्यवहार के बाद, इस बार इस स्तंभ [रविवासरीय] की संरचना पर कुछ बातें दर्
रविवासरीय : 3.0 : ‘जो पेड़ सड़कों पर हैं, वे कभी भी कट सकते हैं’
• मैंने Meta AI से पूछा : भगदड़ क्या है? मुझे उत्तर प्राप्त हुआ : भगदड़ एक ऐसी स्थिति है, जब एक समूह में लोग अचानक
रविवासरीय : 3.0 : ‘मेरा दुश्मन बनने में अब वह कितना वक़्त लेगा’
• प्रशंसा का पहला वाक्य आत्मीय लगता है, लेकिन प्रशंसा के तीसरे वाक्य में प्रशंसा का तर्क भी हो; तब भी उससे बचने का मन कर
रविवासरीय : 3.0 : ‘इन्हें कोई काश ये बता दे मकाम ऊँचा है सादगी का...’
• एक प्रकाशक को देखकर मेरे मन में सबसे पहला ख़याल यही आता है कि उससे किताब ले लूँ। यहाँ ‘किताब ले लेने’ का अर्थ एकायामी न
रविवासरीय : 3.0 : हम आपके डिजिटल डिटॉक्स की कामना करते हैं
• 1 फ़रवरी से 9 फ़रवरी के बीच नई दिल्ली के प्रगति मैदान [भारत मंडपम] में आयोजित विश्व पुस्तक मेले की स्थिति जानने की उत्कं
रविवासरीय : 3.0 : वसंत उर्फ़ दाँत की दवा कान में डाली जाती है
• आगामी रविवार को वसंत पंचमी है। हिंदी में तीस-पैंतीस वर्ष की आयु के बीच जी रहे लेखकों के लिए एक विशेष दिन है। वे इस बार
रविवासरीय : 3.0 : पुष्पा-समय में एक अन्य पुष्पा की याद
• कार्ल मार्क्स अगर आज जीवित होते तो पुष्पा से संवाद छीन लेते, प्रधानसेवकों से आवाज़, रवीश कुमार से साहित्यिक समझ, हिंदी
रविवासरीय : 3.0 : गद्यरक्षाविषयक
• गद्य की रक्षा करना एक गद्यकार का प्राथमिक दायित्व है। गद्यरत के गद्य की रक्षा कैसे होती है? आइए जानते हैं : गद्यरत
वर्ष 2025 की ‘इसक’-सूची
ज्ञानरंजन ने अपने एक वक्तव्य में कहा है : ‘‘सूची कोई भी बनाए, कभी भी बनाए; सूचियाँ हमेशा ख़ारिज की जाती रहेंगी, वे विश्व
हिंदी दिवस पर जानिए हिंदी साहित्य कहाँ से शुरू करें
हिंदी साहित्य कहाँ से शुरू करें? यह प्रश्न कोई भी कर सकता है, बशर्ते वह हिंदी भाषा और उसके साहित्य में दिलचस्पी रखता हो;
आज के दिन भूलकर भी न देखें ये फ़िल्में
इन पंक्तियों के लेखक के एक प्राचीन आलेख (कभी-कभी लगता है कि गोविंदा भी कवि है) के शीर्षक की तरह ही यहाँ प्रस्तुत आलेख का
01 जून 2024
रिचर्ड एटनबरो की ‘गांधी’ और दूसरे प्रसंग
‘‘महानतम कृत्य अपनी चमक खो देते हैं, अगर उन्हें शब्दों में न बाँधा जाए। क्या तुम स्वयं को ऐसा उद्यम करने के योग्य समझते
07 मई 2024
जब रवींद्रनाथ मिले...
एक भारतीय मानुष को पहले-पहल रवींद्रनाथ ठाकुर कब मिलते हैं? इस सवाल पर सोचते हुए मुझे राष्ट्रगान ध्यान-याद आता है। अधिकां
सौ बार मंच पर उतर चुकी एक कविता के बारे में
एक भाषा में कालजयी महत्त्व प्राप्त कर चुकीं साहित्यिक कृतियों के पुनर्पाठ के लिए केवल समालोचना पर निर्भर रहना एक तरह की
'हिन्दवी' की नई प्रस्तुति : साहित्य और संस्कृति की घड़ी : ‘बेला’
‘हिन्दवी’ इस तरह की कोशिशों में यक़ीन करती आई है कि वह हो चुके को ख़ूबसूरत ढंग से सहेज ले। लेकिन इसके साथ-साथ हमारी मंशा य