'हिन्दवी' की नई प्रस्तुति : साहित्य और संस्कृति की घड़ी : ‘बेला’
अविनाश मिश्र
09 अप्रैल 2024
‘हिन्दवी’ इस तरह की कोशिशों में यक़ीन करती आई है कि वह हो चुके को ख़ूबसूरत ढंग से सहेज ले। लेकिन इसके साथ-साथ हमारी मंशा यह भी रही है कि हम हो रहे को भी दर्ज करें। इस सिलसिले में हमने अपनी शुरुआत में ही ‘हिन्दवी ब्लॉग’ नाम के स्पेस को तैयार किया था। इस स्पेस को आपका भरपूर प्यार, सहयोग और समर्थन मिला। लेकिन हम इस स्पेस को और ज़्यादा ताज़ा और साहित्यिक हलचलों से भरा हुआ बनाना चाहते रहे हैं। यह इच्छा ‘हिन्दवी ब्लॉग’ के ज़रिए पूरी तरह रंग-रूप नहीं ले पा रही थी। यह कैसे हो, हम इस पर सभी स्तरों पर बराबर सोचते रहे हैं। इसका ही नतीजा है हमारी यह नई पेशकश—‘बेला’।
‘बेला’—एक ऐसा अदबी ठिकाना है; जहाँ सिर्फ़ अदब ही नहीं, आर्ट और कल्चर और ज़ुबानों में रोज़-ब-रोज़ क्या हुआ, हो रहा और होने वाला है... इसकी इंदराजी होगी। इस मायने में ‘बेला’ एक ऐसी घड़ी है जिसे आप आर्ट एंड कल्चर का वक़्त जानने के लिए जब चाहें देख सकेंगे।
तो आइए हमारे साथ इस बेला ‘बेला’ की शुरुआत करते हैं...
'बेला' की नई पोस्ट्स पाने के लिए हमें सब्सक्राइब कीजिए
कृपया अधिसूचना से संबंधित जानकारी की जाँच करें
आपके सब्सक्राइब के लिए धन्यवाद
हम आपसे शीघ्र ही जुड़ेंगे
बेला पॉपुलर
सबसे ज़्यादा पढ़े और पसंद किए गए पोस्ट
25 अक्तूबर 2025
लोलिता के लेखक नाबोकोव साहित्य-शिक्षक के रूप में
हमारे यहाँ अनेक लेखक हैं, जो अध्यापन करते हैं। अनेक ऐसे छात्र होंगे, जिन्होंने क्लास में बैठकर उनके लेक्चरों के नोट्स लिए होंगे। परीक्षोपयोगी महत्त्व तो उनका अवश्य होगा—किंतु वह तो उन शिक्षकों का भी
06 अक्तूबर 2025
अगम बहै दरियाव, पाँड़े! सुगम अहै मरि जाव
एक पहलवान कुछ न समझते हुए भी पाँड़े बाबा का मुँह ताकने लगे तो उन्होंने समझाया : अपने धर्म की व्यवस्था के अनुसार मरने के तेरह दिन बाद तक, जब तक तेरही नहीं हो जाती, जीव मुक्त रहता है। फिर कहीं न
27 अक्तूबर 2025
विनोद कुमार शुक्ल से दूसरी बार मिलना
दादा (विनोद कुमार शुक्ल) से दुबारा मिलना ऐसा है, जैसे किसी राह भूले पंछी का उस विशाल बरगद के पेड़ पर वापस लौट आना—जिसकी डालियों पर फुदक-फुदक कर उसने उड़ना सीखा था। विकुशु को अपने सामने देखना जादू है।
31 अक्तूबर 2025
सिट्रीज़ीन : ज़िक्र उस परी-वश का और फिर बयाँ अपना
सिट्रीज़ीन—वह ज्ञान के युग में विचारों की तरह अराजक नहीं है, बल्कि वह विचारों को क्षीण करती है। वह उदास और अनमना कर राह भुला देती है। उसकी अंतर्वस्तु में आदमी को सुस्त और खिन्न करने तत्त्व हैं। उसके स
18 अक्तूबर 2025
झाँसी-प्रशस्ति : जब थक जाओ तो आ जाना
मेरा जन्म झाँसी में हुआ। लोग जन्मभूमि को बहुत मानते हैं। संस्कृति हमें यही सिखाती है। जननी और जन्मभूमि स्वर्ग से बढ़कर है, इस बात को बचपन से ही रटाया जाता है। पर क्या जन्म होने मात्र से कोई शहर अपना ह