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भूख पर कविताएँ

भूख भोजन की इच्छा प्रकट

करता शारीरिक वेग है। सामाजिक संदर्भों में यह एक विद्रूपता है जो व्याप्त गहरी आर्थिक असमानता की सूचना देती है। प्रस्तुत चयन में भूख के विभिन्न संदर्भों का उपयोग करती कविताओं का संकलन किया गया है।

देना

नवीन सागर

भूख

नरेश सक्सेना

पहाड़ पर लालटेन

मंगलेश डबराल

पोस्टमार्टम की रिपोर्ट

सर्वेश्वरदयाल सक्सेना

स्‍त्री और आग

नवीन रांगियाल

भूख

सर्वेश्वरदयाल सक्सेना

आख़िरी रोटी

नेहा नरूका

कम ख़ुदा न थी परोसने वाली

चंद्रकांत देवताले

क्रांति

अमित तिवारी

बासी रोटियाँ

उपासना झा

मकड़जाल

संदीप तिवारी

दो बच्चे हैं

निकोलास गुइयेन

लज्जाजनक मातृत्व

आऊलिक्की ओकसानेन

साहब लोग रेनकोट ढूँढ़ रहे हैं

जितेंद्र श्रीवास्तव

यास्वो के नज़दीक भुखमरी शिविर

वीस्वावा षिम्बोर्स्का

बातचीत

एलीसिया पार्तनॉय

1943

सादी यूसुफ़

समयातीत

मनीषा जोषी

भूख

अदूनिस

जा रहे हम

संजय कुंदन

उम्मीद

सौरभ मिश्र

नरपिशाच

मनीषा जोषी

एक अमीर सब्ज़ी

कुमार विकल

भूखा

निकोलाइ नेक्रासोव

आलू

नरेंद्र जैन

विलोप

मनीषा जोषी

अरहर की दाल

इब्बार रब्बी

रोटी और रब

कैलाश वाजपेयी

कंकड़ छाँटती

आत्मा रंजन

निर्धन

दाशरथि

मौन घोष

सोमसुंदर

इज़्ज़त का खाना

राजेश सकलानी

पिछली रोटी

प्रेम रंजन अनिमेष

रोटी

केदारनाथ सिंह

एक आदमी आदेश देकर

पंकज चतुर्वेदी