दोहे

अपभ्रंश साहित्य का प्रमुख छंद, जो कालांतर में लोक साहित्य का सबसे प्रिय छंद बना। यह अपने छोटे से कलेवर में कई बातें समेटने की क्षमता रखता है, इसीलिए इसे गागर में सागर भरने वाला छंद बताया गया है।

1858 -1900

'भारतेंदु मंडल' के कवियों में से एक। कविता की भाषा और शिल्प रीतिकालीन। 'काशी कवितावर्धिनी सभा’ द्वारा 'सुकवि' की उपाधि से विभूषित।

1253 -1325

सूफ़ी संत, संगीतकार, इतिहासकार और भाषाविद। हज़रत निज़ामुद्दीन के शिष्य और खड़ी बोली हिंदी के पहले कवि। ‘हिंदवी’ शब्द के पुरस्कर्ता।

1856 -1931

प्राचीन शैली में लिखने वाले आधुनिक कवियों में से एक। अलंकार ग्रंथ 'भारती भूषण' कीर्ति का आधार ग्रंथ।

रीतिकाल के नीतिकवि।

रीतिकालीन आचार्य कवि। अलंकार ग्रंथ 'अलंकारमणि मंजरी' के रचनाकार। सुबोध और सरल विषय प्रतिपादन के लिए प्रसिद्ध।

हिंदी-काव्यशास्त्र के पहले रचनाकार के रूप में समादृत। सरस, भावपूर्ण और परिमार्जित भाषा के लिए स्मरणीय।

1398 -1518

मध्यकालीन भक्ति-साहित्य की निर्गुण धारा (ज्ञानाश्रयी शाखा) के अत्यंत महत्त्वपूर्ण और विद्रोही संत-कवि।

1771 -1833

डिंगल भाषा के श्रेष्ठ कवि। वीर रस से ओत-प्रोत काव्य के लिए उल्लेखनीय।

1555 -1617

भक्तिकाल और रीतिकाल के संधि कवि। काव्यांग निरूपण, उक्ति-वैचित्र्य और अलंकारप्रियता के लिए स्मरणीय। काव्य- संसार में ‘कठिन काव्य के प्रेत’ के रूप में प्रसिद्ध।

बुंदेली फागों के लिए स्मरणीय कवि।

1538 -1625

अकबर के नवरत्नों में से एक। भक्ति और नीति-कवि। सरस हृदय की रमणीयता और अन्योक्तियों में वाग्वैदग्ध्य के लिए प्रसिद्ध।

रीतिकालीन अलक्षित कवि।

1479 -1574

सिक्ख धर्म के तीसरे गुरु और आध्यात्मिक संत। जातिगत भेदभाव को समाप्त करने और आपसी सौहार्द स्थापित करने के लिए 'लंगर परंपरा' शुरू कर 'पहले पंगत फिर संगत' पर ज़ोर दिया।

1621 -1675

सिक्खों के नौवें गुरु। निर्भय आचरण, धार्मिक अडिगता और नैतिक उदारता का उच्चतम उदाहरण। मानवीय धर्म एवं वैचारिक स्वतंत्रता के लिए महान शहादत देने वाले क्रांतिकारी संत।

1469 -1539

सिक्ख धर्म के आदिगुरु। भावुक और कोमल हृदय के गृहस्थ संत कवि। सर्वेश्वरवादी दर्शन के पक्षधर।

1717 -1778

रीतिकालीन संत। ग़रीब पंथ के प्रवर्तक। राम-रहीम में अभेद और सर्वधर्म समभाव के पक्षधर। कबीर के स्वघोषित शिष्य।

1758

'वागड़ की मीरा' के उपनाम से भूषित। राजस्थान की निर्गुण भक्ति परंपरा से संबद्ध।

भक्तिकालीन रीति कवि। 'शृंगार मंजरी' काव्य परंपरा के अलक्षित आदिकवि।

1833 -1860

वास्तविक नाम गोपालचंद्र। आधुनिक साहित्य के प्रणेता भारतेंदु हरिश्चंद्र के पिता।

1673 -1760

रीतिकालीन काव्य-धारा के महत्त्वपूर्ण कवि। रीतिमुक्त कवियों में से एक। आचार्य रामचंद्र शुक्ल द्वारा ‘साक्षात् रसमूर्ति’ की उपमा से विभूषित।

1518 -1585

कृष्णभक्त कवि। पुष्टिमार्गीय वल्लभ संप्रदाय के अष्टछाप कवियों में से एक। कुंभनदास के पुत्र और गोस्वामी विट्ठलनाथ के शिष्य।

1168 -1192

हिंदी के प्रथम महाकवि। वीरगाथा काल से संबद्ध। ‘पृथ्वीराज रासो’ कीर्ति का आधार-ग्रंथ।

1545 -1605

भक्तिकाल और रीतिकाल के संधि कवि। शब्द-क्रीड़ा में निपुण। भावों में मार्मिक व्यंजना और सहृदयता। दृष्टकूट दोहों के लिए स्मरणीय।

रीतिकाल के अलक्षित नीति कवि।

1629 -1678

मारवाड़ के राजा और रीतिकालीन कवि आचार्य। अलंकार निरूपण ग्रंथ 'भाषा भूषण' से हिंदी-संसार में प्रतिष्ठित।

1614 -1664

सूफ़ी संत, नीतिकार और रासो-काव्य के रचयिता। ब्रजभाषा पर अधिकार। वस्तु-वर्णन के लिए दोहा और सोरठा छंद का चुनाव।

1947

सुपरिचित आलोचक। अनुवादक और संपादक के रूप भी सक्रिय। समय-समय पर काव्य-लेखन भी। जनवादी लेखक संघ से संबद्ध।

आदिकाल की जैन-काव्य-परंपरा के महत्त्वपूर्ण कवियों में से एक।

रीतिकालीन अलक्षित कवि।

1511 -1623

रामभक्ति शाखा के महत्त्वपूर्ण कवि। कीर्ति का आधार-ग्रंथ ‘रामचरितमानस’। उत्तर भारत के मानस को सर्वाधिक प्रभावित करने वाले भक्त कवि।

1693 -1773

'चरनदासी संप्रदाय' से संबंधित संत चरणदास की शिष्या। कविता में सर्वस्व समर्पण और वैराग्य को महत्त्व देने के लिए स्मरणीय।

1833 -1909

सतसई परंपरा के नीति कवि।

1634 -1780

मुक्ति पंथ के प्रवर्तक। स्वयं को कबीर का अवतार घोषित करने वाले निर्गुण संत-कवि।

1660 -1778

रीतिकालीन संधि कवि। सतनामी संप्रदाय से संबद्ध। जगजीवनदास के शिष्य। भाषा में भोजपुरी का पुट।

820 -870

जैन कवि। प्राकृत भाषा में ‘स्याद्वाद’ और ‘नय’ का निरूपण करने के लिए उल्लेखनीय।

रामस्नेही संप्रदाय से संबद्ध संत कवि।

1544 -1603

भक्तिकाल के निर्गुण संत। दादूपंथ के संस्थापक। ग़रीबदास, सुंदरदास, रज्जब और बखना के गुरु। राजस्थान के कबीर।

1802 -1858

रीतिकाल के नीतिकार। भाव निर्वाह के अनुरूप चलती हुई भाषा में मनोहर और रसपूर्ण रचनाओं के लिए प्रसिद्ध।

रीतिकाल के अलक्षित कवि।

1415 -1475

भक्तिकालीन निर्गुण संत। स्वामी रामानंद के शिष्य। आजीवन खेती-बाड़ी करते हुए भक्ति-पथ पर गतिशील कृषक-कवि।

1656

भक्तिकाल के संत कवि। आत्महीनता, नाम स्मरण, विनय और आध्यात्मिक विषयों पर कविताई की। 'निज' की पहचान पर विशेष बल दिया।

कृष्ण-भक्त कवि। गोस्वामी हितहरिवंश के शिष्य। सरस माधुर्य और प्रेम के आदर्श निरूपण के लिए स्मरणीय।

1699 -1764

किशनगढ़ (राजस्थान) नरेश। प्रेम, भक्ति और वैराग्य की साथ नखशिख की सरस रचनाओं के लिए ख्यात।

1623 -1698

नाथ परंपरा के कवि। चर्पटनाथ के शिष्य। असार संसार में लिप्त जीवों की त्रासदी के सजीव वर्णन के लिए स्मरणीय।

1549 -1600

बीकानेर नरेश के भाई और अकबर के दरबारी कवि। भक्ति साहित्य के लिए प्रसिद्ध। 'डिंगल' भाषा के प्रधान कवियों में से एक।

ओरछानरेश इंद्रजीत सिंह की कृपापात्र नर्तकी और विदुषी। प्रचलित है कि आचार्य केशवदास ने 'कविप्रिया' नामक ग्रंथ प्रवीण को कविशिक्षा देने हेतु रचा था।

सूफ़ी काव्य परंपरा के कवि। संयोग और वियोग की विविध दशाओं के वर्णन में सिद्धहस्त। 'रसरतन' ग्रंथ कीर्ति का आधार।

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