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देवादास

रामस्नेही संप्रदाय से संबद्ध संत कवि।

रामस्नेही संप्रदाय से संबद्ध संत कवि।

देवादास के दोहे

रसना सुमिरे राम कूँ, तो कर्म होइ सब नास।

'देवादास' ऐसी करै, तो पावै सुक्ख बिलास॥

तिरे, तिरावै, फिर तिरे, तिरताँ लगै बार।

देवादास रटि राम कूँ, बहुत ऊतर्या पार॥

जल तिरबे को तूँ बड़ा, भौ तिरबे कूँ राम।

'देवादास' सब संत कह, सुमरो आठूँ जाम॥

देवादास कह सुरत सों, वै मूरख बड़ा अग्यान।

पगथ्या पाड़या हाथ सूँ, करै महल को ध्यान॥

ररा ममा को ध्यान धरि, यही उचारै ग्यान।

दुविध्या तिमिर सहजैं मिटै, उदय भक्ति को भान॥

देवा उलटी बात की, संत जाणत हैं रीत।

जागत सुमिरै राम कूँ, सूता अधिकी प्रीत॥

करणी सूँ कृपा करै, कृपा करणी माँय।

'देवादास' कृपा बिना, करणी होती नाँय॥

देवादास कृपाल की, कृपा सब पर जोहि।

करणी कर करुणा करै, ता पर राजी होहि॥

देवा रसना गहलैं चालि कै, हृदय सूरति नाम।

राह बतावै और कूँ, आगे किया मुकाम॥

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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