दोहे

अपभ्रंश साहित्य का प्रमुख छंद, जो कालांतर में लोक साहित्य का सबसे प्रिय छंद बना। यह अपने छोटे से कलेवर में कई बातें समेटने की क्षमता रखता है, इसीलिए इसे गागर में सागर भरने वाला छंद बताया गया है।

1823 -1879

रीतिकालीन कवि और रीवां नरेश विश्वनाथसिंह के पुत्र।

1520 -1594

भक्तिकाल से संबद्ध ब्रजभाषा की कवयित्री। नीति-काव्य के लिए उल्लेखनीय।

1398 -1518

भक्ति की ज्ञानमार्गी एवं प्रेममार्गी शाख़ाओं के मध्य सेतु। मीरा के गुरु।

1548 -1628

कृष्ण-भक्त कवि। भावों की सरस अभिव्यक्ति के लिए ‘रस की खान’ कहे गए। सवैयों के लिए स्मरणीय।

1538 -1640

वास्तविक नाम पृथ्वीसिंह। प्रेम की विविध दशाओं और चेष्टाओं के वर्णन पर फ़ारसी शैली का प्रभाव। सरस दोहों के लिए स्मरणीय।

1689 -1750

रीतिबद्ध कवि। दोहों में चमत्कार और उक्ति-वैचित्र्य के लिए स्मरणीय।

1556 -1627

भक्तिकाल के प्रमुख कवि। व्यावहारिक और सरल ब्रजभाषा के प्रयोग के ज़रिए काव्य में भक्ति, नीति, प्रेम और शृंगार के संगम के लिए स्मरणीय।

'राम सतसई' के रचयिता। शृंगार की सरस उद्भावना और वाक् चातुर्य के कवि।

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