कृपानिवास के दोहे
प्रथम चारु शीला सुभग, गान कला सु प्रवीन।
जुगुल केलि रसना रसित, राम रहस रसलीन॥
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हेमा कर वीरी सदा, हँसि दंपति मुख देत।
संपति राग सुहाग की, सौभागिनि उर हेत॥
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क्षेमा समै प्रबंध कर, वसन विचित्र बनाय।
सुरुचि सुहावन सुखद सब, पिय प्यारी पहिराय॥
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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere