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गणेशपुरी पद्मेश

रीतिकालीन अलक्षित कवि।

रीतिकालीन अलक्षित कवि।

गणेशपुरी पद्मेश के दोहे

कुंडल जिय-रक्षा करन, कवच करन जय वार।

करन दान आहव करन, करन-करन बलिहार॥

जी की रक्षा करने वाले कुंडल और जय करने वाले कवच, इनका दान करने वाले और युद्ध करने वाले कर्ण के हाथों की बलिहारी है।

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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