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गरीबदास

1717 - 1778 | रोहतक, हरियाणा

रीतिकालीन संत। ग़रीब पंथ के प्रवर्तक। राम-रहीम में अभेद और सर्वधर्म समभाव के पक्षधर। कबीर के स्वघोषित शिष्य।

रीतिकालीन संत। ग़रीब पंथ के प्रवर्तक। राम-रहीम में अभेद और सर्वधर्म समभाव के पक्षधर। कबीर के स्वघोषित शिष्य।

गरीबदास के दोहे

साहब तेरी साहबी, कैसे जानी जाय।

त्रिसरेनू से झीन है, नैनों रहा समाय॥

साहब मेरी बीनती, सुनो गरीब निवाज।

जल की बूँद महल रचा, भला बनाया साज॥

भगति बिना क्या होत है, भरम रहा संसार।

रत्ती कंचन पाय नहिं, रावन चलती बार॥

सुरत निरत मन पवन कूँ, करो एकत्तर यार।

द्वादस उलट समोय ले, दिल अंदर दीदार॥

पारस हमारा नाम है, लोहा हमरी जात।

जड़ सेती जड़ पलटिया, तुम कूँ केतिक बात॥

लै लागी जब जानिये, जग सूँ रहै उदास।

नाम रटै निर्भय कला, हर दर हीरा स्वांस॥

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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