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जसुराम

रीतिकाल के अलक्षित नीति कवि।

रीतिकाल के अलक्षित नीति कवि।

जसुराम के दोहे

राजनीति सबही पढ़े, सब ते राखे स्नेह।

जा के किमत नहिं जसू, लगे कुलच्छन एह॥

रैयत सब राज़ी रहै, मेटन राउत मान।

आमद घटै राय की, ऐसे करै प्रधान॥

चोरी चुगली पर तिया, कोऊ काम कुकाम।

एती बात जानिये, सोऊ रैयत नाम॥

जो दीजै परधान पद, तो कीजे इतवार।

जो इतवार होय जसु, तो परधान निवार॥

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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