Font by Mehr Nastaliq Web
noImage

दुलारेलाल भार्गव

दुलारेलाल भार्गव के दोहे

7
Favorite

श्रेणीबद्ध करें

इड़ा-गंग, पिंगला-जमुन, सुखमन-सरसुति-संग।

मिलत उठति बहु अरथमय, अनुपम सबद-तरंग॥

नखत-मुकत आँगन-गगन, प्रकृति देति बिखराय।

बाल हंस चुपचाप चट, चमक-चोंच चुगि जाय॥

गांधी-गुरु तें ग्याँन लै, चरखा-अनहद-ज़ोर।

भारत सबद-तरंग पै, बहत मुकति की ओर॥

संतत सहज सुभाव सों, सुजन सबै सनमानि।

सुधा-सरस सींचत स्रवन, सनी-सनेह सुबानि॥

हृदय कूप, मन रहँट, सुधि-माल, रस राग।

बिरह बृषभ, बरखा नयन, क्यों सिंचै तन-बाग॥

दमकति दरपन-दरप दरि, दीपसिखा-दुति देह।

वह दृढ़ इकदिसि दिपत, यह मृदु दिसनिस-नेह॥

जग-नद में तेरी परी, देह-नाव मँझधार।

मन-मलाह जो बस करै, निहचै उतरै पार॥

संगत के अनुसार ही, सबकौ बनत सुभाइ।

साँभर में जो कछु परै, निरो नोंन ह्वै जाइ॥

कढ़ि सर तें द्रुत दै गई, दृगनि देह-दुति चौंध।

बरसत बादर-बीच जनु, गई बीजुरी कौंध॥

झीनें अंबर झलमलति, उरजनि-छबि छितराइ।

रजत-रजनि जुग चंद-दुति, अंबर तें छिति छाइ॥

कलिजुग ही मैं मैं लखी, अति अचरज मय बात।

होत पतित-पावन पतित, छुवत पतित जब गात॥

मुकता सुख-अँसुआ भए, भयौ ताग उर-प्यार।

बरुनि-सुई तें गूँथि दृग, देत हार उपहार॥

लरैं नैंन, पलकैं गिरैं, चित तरपैं दिन-रात।

उठै सूल उर, प्रीति-पुर, अजब अनौखी बात॥

झपकि रही, धीरें चलौ, करौ दूरि तें प्यार।

पीर-दब्यौ दरकै उर, चुंबन ही के भार॥

दुष्ट दुसासन दलमल्यौ, भीम भीमतम-भेस।

पाल्यौ प्रन, छाक्यौ रकत, बाँधे कृस्ना-केस॥

जोबन-उपबन-खिलि अली, लली-लता मुरझाय।

ज्यों-ज्यों डूबे प्रेम-रस, त्यों-त्यों सूखति जाय॥

गई रात, साथी चले, भई दीप-दुति मंद।

जोबन-मदिरा पी चुक्यौ, अजहुँ चेति मति-मंद॥

अगम सिंधु जिमि सीप-उर, मुकता करत निवास।

तिमिर-तोम तिमि हृदय बसि, करि हृदयेस! प्रकास॥

ग्राह-गहत गजराज की, गरज गहत ब्रजराज।

भजे ग़रीबनिवाज कौ, बिरद बचावन-काज॥

छुट्यो राज, रानी बिकी, सहत डोम-गृह दंद।

मृत सुत हू लखि प्रियहिं तें, कर माँगत हरिचंद॥

बिरह-सिंधु उमड़्यौ इतौ, पिय-पयान-तूफ़ान।

बिथा-बीचि-अवली अली, अथिर प्रान-जलजान॥

दरसनीय सुनि देस वह, जहें दुति-ही-दुति होइ।

हौं बारौ हेरन गयौ, बैठ्यौ निज दुति खोइ॥

सत-इसटिक जग-फील्ड लै, जीवन-हॉकी खेलि।

वा अनंत के गोल में, आतम-बॉलहिं मेलि॥

समय समुझि सुख-मिलन कौ, लहि मुख-चंद-उजास।

मंद-मंद मंदिर चली, लाज-सुखी पिय-पास॥

काम, दाम, आराम कौ, सुघर समनुवै होइ।

तौ सुरपुर की कलपना, कबहूँ करै कोई॥

तचत बिरह-रबिउर उदधि, उठत सघन दुख-मेह।

नयन-गगन उमड़त घुमड़ि, बरसत सलिल अछेह॥

कब तें लै मन-ठीकरौ, खरौ भिखारी द्वार।

दरसन-दुति-कन दै हरौ, मति-मत-तोम अपार॥

पुर तें पलटे पीय की, पर-तिय-प्रीतिहिं पेखि।

बिछुरन-दुख सों मिलन-सुख, दाहक भयौ बिसेखि॥

जगि-जगि, बुझि-बुझि जगत में, जुगनू की गति होति।

कब अनंत परकास सों, जगि है जीवन-जोति॥

एती गरमी देखि कै, करि बरसा-अनुपान।

अली भली पिय पैं चली, लली दसा धरि ध्यान॥

दंपति-हित-डोरी खरी, परी चपल चित-डार।

चार चखन-पटरी अरी, झोंकनि झूलत मार॥

नाह-नेह-नभ तें अली, टारि रोस कौ राहु।

पिय-मुख-चंद दिखाहु प्रिय, तिय-कुमुदिनि बिकसाहु॥

सोवत कंत इकंत चहुँ, चितै रही मुख चाहि।

पै कपोल पै ललक लखि भजी लाज अवगाहि॥

बार बित्यौ लखि, बार झुकि, बार बिरह के बार।

बार-बार सोचति कितै, कीन्हीं बार लबार॥

हिममय परबत पर परति, दिनकर-प्रभा प्रभात।

प्रकृति-परी के उर पर्यो, हेम-हार लहरात॥

  • संबंधित विषय : धूप

स्याम-सुरँग रँग-करन-कर, रग-रग रँगत उदोत।

जग-मग जगमग जगमगत, डग डगमग नहिं होत॥

सुखद समै संगी सबै, कठिन काल कोउ नाहिं।

मधु सोहैं उपबन सुमन, नहिं निदाघ दिखराहिं॥

ऊँच-जनम जन जे हरैं, नित नमि-नमि पर-पीर।

गिरिवर तें ढरि-ढरि धरनि, सींचत ज्यों नद-नीर॥

हौं सखि, सीसी आतसी, कहति साँच-ही-साँच!

बिरह-आँच खाई इती, तऊ आई आँच॥

हृदय-सून तें असत-तम, हरौ करौ जो सून।

सून-भरन के हित झपटि, झट आवेगौ सून॥

निठुर, नीच नादान बिरह, छाँड़त संग छिन।

सहृदय सजनि सुजान, मीच, याहि लै जाहु किन॥

नैंन-आतसी काँच परि छबि-रबि-कर अवदात।

झुलसायौ उर-कागदहिं, उड़्यौ साँस-सँग जात॥

बिषय-बात मन-पोत कों, भव-नद देति बहाइ।

पकरु नाम पतवार दृढ़, तौ लगिहै तट आइ॥

चित-चकमक पै चोट दै, चितवन-लोह चलाइ।

लगन-लाइ हिय-सूत में, ललना गई लगाइ॥

चख-झख तब दृग-सर-सरस, बूड़ि, बहुरि उतराय।

बेंदी-छटके में छटकि, अटकि जात निरुपाय॥

दुष्ट-दनुज-दल-दलन को, धरे तीक्ष्ण तरवार।

देश-शक्ति दुर्गावती, दुर्गा कौ अवतार॥

हौं सखि, सीसी आतसी, कहति साँच-ही-साँच।

बिरह-आँच खाई इती, तऊ आई आँच!॥

नंद-नंद सुख-कंद कौ, मंद हँसत सुख-चंद।

नसत दंद-छलछंद-तम, जगत-जगत आनंद॥

लंक लचाइ, नचाइ दृग, पग उँचाइ, भरि चाइ।

सिर धरि गागरि, मगन मग, नागरि नाचति जाइ॥

लहि पिय-रबि तें हित-किरन, बिकसित रह्यौ अमंद।

आइ बीच अनरस-अवनि, किय मलीन मुख-चंद॥

Recitation