तिरुवल्लुवर के कवितांश
संशयमुक्त होकर
सच्चा ज्ञान पाने वाले को
संसार की अपेक्षा
मोक्ष अधिक समीप है
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प्रेम के तत्त्व पर आधृत
तन ही प्राणवंत है प्रेम
प्रेमहीन शरीर कंकाल मात्र है—
चमड़े से मढ़ा
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जिनकी कीर्ति अक्षुण्ण है
उन्हीं मनुष्य का जीवन है श्लाघनीय
जिनका जीवन कीर्तिरहित है
वे तो मृतक समान हैं
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इस प्रकार शब्द का प्रयोग करो
कि उस शब्द के स्थान पर
दूसरे पर्यायवाची शब्द का प्रयोग
नहीं करना पड़े
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संबंधित विषय : शब्द
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सुनने वालों की क्षमता को
ध्यान में रख शब्द का प्रयोग करो
अन्यथा धर्म और अर्थ का
कोई मूल्य नहीं
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जो निरर्थक शब्दों का
बार-बार प्रयोग करता है
वह मनुष्यों में कूड़े के समान है
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यदि आँख न ही खुले तो अच्छा है
मेरे प्रियतम, जो स्वप्न में आते हैं
मुझसे कभी नहीं बिछुड़ेंगे
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मनुष्य का मोह
जिस-जिससे छूटेगा
वह उनसे होने वाले
दु:ख से सदा मुक्त रहेगा
इस पृथ्वी पर जो गृहस्थ
धर्मनिष्ठ रहता है
वह स्वर्ग के देवगणों के
सदृश पाता है सम्मान
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वैभवरहित व्यक्ति
एक न एक दिन
बन सकता है वैभवशाली
लेकिन! जिनके हृदय में दया नहीं
उनका उद्धार हो सकता कभी नहीं
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मूर्ख लोगों से
घनिष्ठ मित्रता की अपेक्षा
समझदार की शत्रुता
करोड़ों गुना अच्छी है
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अपने बच्चों के शरीर का स्पर्श सुखद है
उनकी तोतली बोली सुनना
कान के लिए सुखद है।
उनका हृदय तो सदा
उनका साथ देता रहा
ओ मेरे अंतर—
तू क्यों मेरा साथ नहीं देता
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देखना, स्पर्श करना,
सूँघना, सुनना, अनुभव करना—
पंचेंद्रियों का सुख
नायिका से पूर्ण रूप से मिल जाता है
जितना उसके बारे में जानते हैं
उतना ही उसके बारे में कम जानकारी मिलती है
उस नायिका से अधिकाधिक सुख मिलने पर
उतना ही उसके बारे में जान पाते हैं
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आग तो छूने पर ही जला सकती है
किंतु काम-ज्वर तो बिछुड़ने पर जलाता है
इसके पूर्व मुत्यु के बारे में
मैं नहीं जान पाया
अब मैं इसको जान गया—
वह उसकी बड़ी-बड़ी
आक्रामक आँखें ही हैं
आत्मा और शरीर के सदृश
मुझमें और उस नायिका में अंतरंगता है
जो बौद्धिक स्तर पर
तुम्हारे बराबर नहीं हैं
उनके समक्ष वार्तालाप करना
गंदे आँगन में
अमृत बहाने के बराबर है
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एक नीच व्यक्ति
जितनी पीड़ा स्वयं अपने आपको देता है
उतना ताप देना
किसी दुश्मन को भी संभव नही
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जिनकी चाह मिट गई
वही पूर्ण रूप से स्वतंत्र है
शेष स्वतंत्र नहीं हो सकते
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अपनी प्रिय नायिका के सुकोमल कंधों पर
सोने वाले को जो आंनद मिलता है
वह अपने आपमें परम सुखोप्लब्धि है
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नायिका बिछुड़ने पर जला देती है
निकट जाने पर शीतलता प्रदान करती है
इस बाला ने इस प्रकार की
विचित्र आग कहाँ से पाई ?
दोषरहित शब्दों को
जो प्रयोग नहीं करना जानते
वे कई शब्दों को
एक साथ प्रयोग करते हैं
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मधु पीने पर ही नशीला प्रतीत होता है
पर काम तो
दर्शन मात्र से उन्मत्त कर देता है
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प्रेमशून्य व्यक्ति
अपने लिए सब कुछ बटोरते हैं
प्रेमी जन जो दूसरों के होते हैं
अपना सब कुछ—अस्थि तक—
बलिदान कर देते हैं।
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विद्यावान् की दो आँखें होती हैं
पर अशिक्षित लोगों के लिए
ये आँखें उनके चेहरे पर
दो घाव मात्र हैं
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अपने नन्हे-मुन्ने के
हाथ से बिलगा भात
माता-पिता को
अमृत-सा स्वादिष्ट लगता है
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प्रियतम का दूत
मेरे स्वप्न में आया
मैं उसका अतिथि-सत्कार
किस प्रकार करूँ?
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इस दुनिया में
जो गृहस्थ होगा धर्मनिष्ठ,
मतिमान वह स्वर्ग से
देवगणों में पाएगा सम्मान!
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उस तृष्णा का नाश अभीष्ट है
जो भयंकर दुख का स्वरूप है
तभी मनुष्य इस जीवन में भी
अधिक सुख पा सकता है
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जैसे अधोवस्त्र खिसकते समय
हाथ उसे थामने के लिए तेज़ी से जाता है
वैसे ही कठिनाई के समय
तत्काल मित्र की सहायता करनी चाहिए
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सीखे हुए ग्रंथों को
दूसरों को समझाने में
जो असमर्थ हैं
वे उस फूल के बराबर हैं
जो विकसित होने पर भी
अपनी सुगंध को फैला नहीं सकते
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संबंधित विषय : ज्ञान
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मैंने अपनी प्रियतमा से कहा,
मैं तुमको सबसे बढ़कर प्यार करता हूँ
इसे सुनकर वह बहुत ग़ुस्से में भर गई
और रूठकर कहने लगी,
फिर तुम किस-किसको प्यार करते हो भला?
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संतान के प्रति
पिता का कर्त्तव्य है—
उसे विद्वानों की सभा में
अग्र स्थान दिलाना
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दूसरों से हिल-मिलकर
प्रसन्नता से जो नहीं रह सकते
उन्हें यह बड़ा विश्व
दिन में भी
रात के सदृश अंधकारमय है
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मैं जीवित हूँ इसलिए
कि उसके साथ सुख के कुछेक दिन मैंने बिताए
उन्हीं के सुखदायी क्षणों का स्मरण कर
जीवित हूँ मैं
वरना जीवित नहीं रह पाती
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अशिक्षित व्यक्ति भी भाग्यशाली है
यदि विद्वानों की सभा में
व्याख्यान देने का साहस न करे
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जिसकी कभी पूर्ति नहीं होती
उस तृष्णा को त्यागना चाहिए
तभी तुम्हें मुक्ति की दशा मिलेगी
जो सदा संतुष्टि प्रदान करेगी
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जिसने अहंकार ममकार का त्याग किया
वह देव लोगों को भी अप्राप्य
स्वर्गलोक को प्राप्त करेगा
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कई झूठ बोलने में
समर्थ दुष्ट के नीच वचन ही
स्त्री के सतीत्व को तोड़ने वाली
सेना होगी
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आग में चर्बी की तरह
पिघल जाता है जिनका दिल
वे अपने प्रियतम से भला
कभी मान कर सकते हैं?
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मेरे पौरुष के सम्मुख टिक नहीं सकते
दुश्मन युद्ध-भूमि में
लेकिन उस नायिका के तेजोमय भाल को
देखते ही मेरी शक्ति चूर-चूर हो जाती है
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जो दवा बीमारी को दूर कर देती है
वही दवा कभी उल्टा असर भी करती है
लेकिन जो रोग उस नायिका के कारण हुआ
उसकी दवा तो वही है
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मूर्खों की मित्रता अत्यंत सुखदायक है
क्योंकि उनके विछोह में
वेदना कदापि नहीं होती।
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संबंधित विषय : मूर्ख
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सज्जनों को दिन;
दिखाई पड़ता है
आरी के दाँत के समान दुर्दांत
जो हमारी आयु को—
चीर रहा है धीरे-धीरे
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