जीवन पर कवितांश
जहाँ जीवन को स्वयं कविता
कहा गया हो, कविता में जीवन का उतरना अस्वाभाविक प्रतीति नहीं है। प्रस्तुत चयन में जीवन, जीवनानुभव, जीवन-संबंधी धारणाओं, जीवन की जय-पराजय आदि की अभिव्यक्ति देती कविताओं का संकलन किया गया है।
मैं मरूँगा दो बार
एक बार प्रेम में
दूसरी बार जीवन में मरूँगा।
मनुष्य का मोह
जिस-जिससे छूटेगा
वह उनसे होने वाले
दु:ख से सदा मुक्त रहेगा
सज्जनों को दिन;
दिखाई पड़ता है
आरी के दाँत के समान दुर्दांत
जो हमारी आयु को—
चीर रहा है धीरे-धीरे
ख़ुद भी लाभ उठाए बिना
और योग्य व्यक्तियों को दान दिए बग़ैर
जीने वाला व्यक्ति
संपत्ति के लिए रोग बन जाता है