स्वप्न पर कवितांश
सुप्तावस्था के विभिन्न
चरणों में अनैच्छिक रूप से प्रकट होने वाले दृश्य, भाव और उत्तेजना को सामूहिक रूप से स्वप्न कहा जाता है। स्वप्न के प्रति मानव में एक आदिम जिज्ञासा रही है और विभिन्न संस्कृतियों ने अपनी अवधारणाएँ विकसित की हैं। प्रस्तुत चयन में स्वप्न को विषय बनाती कविताओं को शामिल किया गया है।
यदि आँख न ही खुले तो अच्छा है
मेरे प्रियतम, जो स्वप्न में आते हैं
मुझसे कभी नहीं बिछुड़ेंगे
नींद में तो मेरे गले लग जाती है
लेकिन जब मैं जाग उठता हूँ
मेरे हृदय के अंदर प्रवेश करती है