सुख पर कवितांश
आनंद, अनुकूलता, प्रसन्नता,
शांति आदि की अनुभूति को सुख कहा जाता है। मनुष्य का आंतरिक और बाह्य संसार उसके सुख-दुख का निमित्त बनता है। प्रत्येक मनुष्य अपने अंदर सुख की नैसर्गिक कामना करता है और दुख और पीड़ा से मुक्ति चाहता है। बुद्ध ने दुख को सत्य और सुख को आभास या प्रतीति भर कहा था। इस चयन में सुख को विषय बनाती कविताओं का संकलन किया गया है।
लगता है कभी-कभी
सुख एक डर है
अपने बच्चों के शरीर का स्पर्श सुखद है
उनकी तोतली बोली सुनना
कान के लिए सुखद है।
अपनी प्रिय नायिका के सुकोमल कंधों पर
सोने वाले को जो आंनद मिलता है
वह अपने आपमें परम सुखोप्लब्धि है
उस तृष्णा का नाश अभीष्ट है
जो भयंकर दुख का स्वरूप है
तभी मनुष्य इस जीवन में भी
अधिक सुख पा सकता है