ईश्वर पर कवितांश
ईश्वर मानवीय कल्पना
या स्मृति का अद्वितीय प्रतिबिंबन है। वह मानव के सुख-दुःख की कथाओं का नायक भी रहा है और अवलंब भी। संकल्पनाओं के लोकतंत्रीकरण के साथ मानव और ईश्वर के संबंध बदले हैं तो ईश्वर से मानव के संबंध और संवाद में भी अंतर आया है। आदिम प्रार्थनाओं से समकालीन कविताओं तक ईश्वर और मानव की इस सहयात्रा की प्रगति को देखा जा सकता है।
आख़िर इतनी भीड़
क्यों लगा रखी है ईश्वर ने दुनिया में
जिस तरफ़ सिर झुकाओ
कृपा करने खड़े हो जाते हैं।
चाह छोड़ो
चाहरहित
ईश्वर से प्रेम करो
'अ' का स्थान
सभी अक्षरों की आदि में है
उसी प्रकार लोक का
आदि तो आदि भगवान है
उसके प्यार में
पा लेता हूँ अपना ईश्वर
और उसे खो देता हूँ।