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असरानी के लिए दस कविताएँ

असरानी

एक

असरानी के निधन पर
हमें कितना ग़मगीन होना चाहिए
राजेश खन्ना के निधन से ज़्यादा
या राजेश खन्ना के निधन से कम?

दो

वह कहानी का हिस्सा थे
पर कहानी उनके बारे में नहीं थी
कभी वह नायक के साथी थे
कभी नायक की चुनौती
हँसते-रोते या तरह-तरह के करतब करते
वह जो कुछ भी करते
उस सबसे गढ़ती थी
नायक की ही छवि
अंत में उन सबके हिस्से का श्रेय लेकर
नायक चला जाता था
दर्शकों के दिल से होकर
उनके स्वप्न तक।

तीन

कहानी उनके बारे में नहीं थी
इसलिए उनके हिस्से में आए
छोटे-छोटे दृश्य
उन छोटी जगहों पर 
भरपूर दिखने की कोशिश में
ज़्यादा खिंची उनके चेहरे की मांसपेशियाँ

उन्होंने अपने स्वप्न का
विकृत यथार्थ जिया
जीवन में।

चार

फ़िल्म में उनके दृश्य
कहानी से छूटी हुई जगहों पर थे
जैसे कपड़े के छिद्र को ढकने के लिए
लगाया गया पैबंद
लेकिन कई बार
इतने ख़ूबसूरत थे ये पैबंद
कि सिर्फ़ पैबंदों ने बचाई लाज।

पाँच

कभी उनका चेहरा जाता था
उनके ख़िलाफ़
कभी क़द
वह सोचते 
और अपनी देह से अनुपस्थित
नायक-तत्त्वों को कोसते

फिर एक दिन
उन्होंने सोचना छोड़ दिया
इसके बाद उन्होंने नृत्य में मगन
किसी नर्तकी के नृत्य की तरह निभाईं
अपनी भूमिकाएँ।

छह

वह कहानीकार से नाराज़ थे
कि वह लिखता है
हर बार एक-सी कहानी
जिसमें एक ही तरह के
चेहरे-मोहरे वाला व्यक्ति
होता है नायक

वह दर्शक से नाराज़ थे
कि वह हँसता है
देखकर एक ही भंगिमा
बार-बार।

सात

वह छवियों से करते थे घृणा
वह जानते थे एक साथ कई ग़ुंडों को
धूल चटाने वाला नायक
दरअस्ल कितना भीरु था
कितना कुंठित था
बड़े हृदय वाला नायक

सिर्फ़ वह जानते थे
कितने आँसुओं से मिलकर बनती है
एक अदद हँसी।

आठ

वह जेलर बने
क़ैदी बने
हिंदू बने 
पारसी बने
लाला बने
पुजारी बने
जवान बने 
बूढ़े बने
अंधे बने 
गूँगे बने
भाई बने 
बाप बने
मालिक बने
नौकर बने
दुकानदार बने
किसान बने

वह सब बने
सिर्फ़ एक
नायक बनने के सिवा।

नौ

उनके मरने पर
दुखी हुए नायक
कि नहीं रहा
उनकी छवि को
पुष्ट करता हुआ
एक व्यक्ति।

दस

अपने निधन पर
जितने भर के लिए
याद किए गए
असरानी जैसे लोग
उनमें उससे कहीं ज़्यादा
याद किए जाने की संभावना थी
किंतु अफ़सोस
कि फ़िल्म की अवधि
सिर्फ़ तीन घंटे की थी
जिसमें ढाई घंटे के दृश्य
नायक के लिए पहले से तय थे।

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