‘द सेंस ऑफ़ एन एंडिंग’ : आशिक़ बना देने वाला नॉवेल
तसनीफ़ हैदर 20 जुलाई 2024
इंसान शायद इसीलिए सबसे अकेला जानवर भी है, क्योंकि उसने अपने लिए जीवन के उसूल बनाए हैं।
जूलियन बार्न्स के नॉवेल ‘द सेंस ऑफ़ एन एंडिंग’ का जब मैंने अध्ययन किया, तब उनकी इस छोटी-सी किताब से मुझे अपना आशिक़ बना लिया। उनकी नज़र दर्शन पर गहरी है। इस नॉवेल में भी यह साफ़ नज़र आता है। इसकी कहानी बस इतनी है कि एक शख़्स अपने स्कूल के दोस्तों से ज़िंदगी भर साथ रहने का वादा करता है, मगर फिर ज़िंदगी की असल दौड़ में शामिल होते ही सब कुछ पीछे छूट जाता है। महबूबा के साथ भी कुछ अर्से रहकर उससे ब्रेकअप हो जाता है और उसकी महबूबा कुछ ऐसा करती है, जिससे वह बहुत दुखी होता है।
जूलियन बार्न्स ने जो मुख्य किरदार तराशा है, उससे मैं इसलिए भी रिलेट कर सका हूँ; क्योंकि जिस क़िस्म का सुस्त उसका प्रोटैगनिस्ट है, वैसा ही कुछ मैं भी हूँ। मगर उसका जो दुख है, उसका जो अंजाम है, जो अंत है, वो बेहद जज़्बाती है। सुस्त वो होते हैं—जो ज़िंदगी में कुछ भी खो जाने के एहसास पर बहुत ज़्यादा दुखी नहीं होते। जिनको किसी इंसान, किसी चीज़ को रोकने के लिए की जाने वाली जज़्बाती मेहनत से बचना होता है।
आमतौर पर उम्दा क़िस्म के रचनाकारों में यह रवैया ज़्यादा दिखाई देता है। यहाँ बार्न्स के नॉवेल पर बात करते हुए एक दूसरी बात भी उछाल देने के तौर पर कहना चाहूँगा कि आजकल जो लोग आपको नॉवेल की मुहिम की बात करते, उसकी शोहरत और लोगों के बीच पसंद किए जाने के आंदोलन का झंडा उठाने जैसी बेहूदा बातें करते हैं—उनको समझना चाहिए कि किसी भी फ़नकार का बुनियादी काम अपने फ़न की नुमाइश है, न कि उसे बेचने के लिए बीच बाज़ार खड़े होकर गला फाड़ना। यह सिर्फ़ उन हालात में मुनासिब हो सकता है, जहाँ कलाकार के ज़िंदा रहने के लिए इसके सिवा कोई चारा न हो।
मेरी राय में किसी भी नॉवेल को पढ़वाने और पसंद करवाने के लिए इस तरह के तरीक़े इस्तेमाल करने वाला लेखक एक तरह की कश्मकश का ख़ुद भी शिकार हो जाता है, जहाँ वो अपनी गिनती तो गंभीर लिखने वालों में करना चाहता है। मगर शोहरत की ख़्वाहिश उसे सतही क़िस्म के लिखने वालों के बीच ला खड़ा करती है। और अगर आपको देखना हो कि यह कैसे होता है तो आप इन शोहरत-पसंदों की किताबों का एक सिरे से अध्ययन करते जाइए, आपको इसका अंदाज़ा हो जाएगा।
ख़ैर, जूलियन बार्न्स की तरफ़ लौटते हैं। इस नॉवेल का पहला हिस्सा पढ़ते वक़्त, मैं सोच रहा था कि वो जल्दबाज़ी में लिखा गया है। ऐसा मैं इसलिए नहीं कह रहा कि यह नॉवेल छोटा है, छोटे नॉवेल या लघु उपन्यास भी अपने आपमें भरपूर नज़र आते हैं और उन में किसी तरह की कमी का एहसास भी कम होता है—जैसे कि एनी अर्नो और पीटर हैंडके वग़ैरा के नॉवेल।
बार्न्स उनके मुक़ाबले में मोनोलॉग्स से ज़्यादा काम लेता हुआ नज़र आता है और मेरा अंदाज़ा है कि मोनोलॉग्स की तकनीक को दोस्तोयेवस्की से बेहतर शायद ही किसी ने इस्तेमाल किया हो, बल्कि उसके छोटे नॉवेल एक तरह के मोनोलॉग ही मालूम होते हैं। इसकी मिसाल में ‘नोट्स फ़्रॉम अंडरग्राउंड’ को ख़ासतौर पर पेश किया जा सकता है।
कई जगहों पर ऐसा लगता है कि बार्न्स ने अपने पढ़ने वाले को जानबूझकर एक तरह के अंतरिक्ष में भटकने के लिए छोड़ दिया है, चूँकि कहानी का पहला हिस्सा नौजवानों की ज़िंदगी का अहाता करता है, इसलिए कई जगहों पर उनकी बातचीत एक जगह से दूसरी जगह भटकती हुई और अल्हड़-सी भी मालूम होती है और पढ़ने वाले की मेहनत इस वजह से बढ़ जाती है। फिर भी इसमें एड्रियन फ़िन का किरदार मेरे लिए बहुत अनोखा था। मैं उसमें एक बेहद क़ाबिल, दार्शनिक और समझदार इंसान को देख रहा था।
लेकिन दूसरा हिस्सा पढ़ते वक़्त खुला कि नॉवेल का पहला हिस्सा कहानी से ज़्यादा एक तरह की प्रस्तावना है, जिसका विस्तार दूसरे हिस्से में है। इसी हिस्से में फ़िन के मुक़ाबले में मुख्य किरदार टोनी वेबस्टर ज़्यादा आकर्षित करने लगता है—नज़दीकी मालूम होता है। उसका दुख अपना दुख लगने लगता है। मुख्य किरदार की पत्नी मारग्रेट का किरदार छोटा और कहीं-कहीं है, मगर कमाल का रचा गया है।
वेबस्टर की ज़िंदगी को यूँ तो एक वसीयतनामा बुढ़ापे में बिल्कुल बदलकर रख देता है, मगर आख़िर में पता चलता है कि उसने ज़िंदगी जीने का जो तरीक़ा अपने लिए पसंद किया; उसने कितने सिक्के उसके हाथ पर रखे और कितने ही उससे छीन लिए। मुझे उसकी यह अदा पसंद आई कि वो इंसानी दिमाग़ की इस चालाकी को निहायत ख़ूबसूरती से बयान करता है, जो असल में एक दूसरी तरह की मूर्खता होती है, धोखा होती है।
मैं कहानी-वहानी पर बयान नहीं करना चाहता, मगर फिर भी इतना कहूँगा कि लेखक ने तमाम तरह के दार्शनिक रंगों के बावजूद कहानी के साथ इंसाफ़ किया है। हर क़दम पर आप उसके साथ-साथ चलते हैं और उसको लगने वाले झटकों से आप भी प्रभावित होते जाते हैं। कहा जा सकता है कि जूलियन बार्न्स का यह नॉवेल इंसानी रिश्तों, अपेक्षाओं, आत्महत्या और ज़िंदगी के बेमतलबपन या अर्थहीनता को अपना विषय बनाता चलता है।
इंसानी सोच का बदलाव भी इसका एक अहम चुनाव है। एड्रियन फ़िन ज़िंदगी और ख़ुदकुशी के बारे में जिस तरह अपनी राय तब्दील करता है, वह बताता है कि हम सब दूसरों की ज़िंदगी पर लाख टिप्पणियाँ कर लें, हँस लें या फिर किसी का मज़ाक़ बनाते फिरें; मगर जब ज़िंदगी हमें किसी ख़ास तरह के माहौल में ला खड़ा करती है तो हमारे सामने वही हालात पैदा करती है। तब हम समझ पाते हैं कि हमारा अंजाम उस आदमी से कुछ अलग नहीं हो सकता, बल्कि कई दफ़ा हम वो अंजाम ख़ुद अपने लिए चुनते हैं और इसी में अपनी भलाई महसूस करते हैं।
इस नॉवेल का एक अहम पहलू सामाजिक भी है। काम-वासना के हवाले से और इस से जुड़े राज़ों के बाहर निकल जाने के डर से हम सब कितने बँधे हुए हैं। एक तरह की रहस्यपूर्णता ने हमें कितना लपेटा हुआ है। हमारी ख़्वाहिशें और अँधेरे में डूबी हुई हमारी हसरतें, जब सचाई में ढलती हैं तो हम किस तरह दिन रात उनको लोगों की नज़रों से बचाने में जुट जाते हैं। इंसान शायद इसीलिए सबसे अकेला जानवर भी है, क्योंकि उसने अपने लिए जीवन के उसूल बनाए हैं। वे बहुत ऊपरी, भौंडे और कई बार निर्दयी भी हो जाते हैं। इससे ही हमारी आज़ादी की अवधारणा भी जुड़ी हुई है।
मैं समझता हूँ कि जूलियन बार्न्स का यह नॉवेल कई तरह से हमारे ज़ेहन पर ख़यालात के दरवाज़े खोलता है और हमें बताता है कि किसी भी उम्दा नॉवेल के लिए किसी तरह की कोई ख़ास शर्त नहीं लगाई जा सकती। आमतौर पर ऐसे नॉवेल जिनमें दर्शन ऊपरी परतों में ही नज़र आ जाए, मुझे ज़्यादा पसंद नहीं आया करते, बल्कि उनके मुक़ाबले में मैं, जे. एम. कोएट्जी को ज़्यादा पसंद इसीलिए करता हूँ कि वहाँ फ़लसफ़ा कहानी की बेहद अंदरूनी परतों में तैरता रहता है। ख़ासतौर पर उसकी कहानी—‘द पोल’।
बहरहाल, आख़िरी बात यह कि जूलियन बार्न्स का यह नॉवेल शायद उनका सबसे बेहतर काम नहीं है; मगर यह आपको उन्हें और ज़्यादा जानने और समझने पर आमादा करने के लिए काफ़ी है। हो सकता है आप भी उनके इश्क़ में मेरी तरह गिरफ़्तार हो जाएँ।
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