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महमूद दरवेश

1941 - 2008 | अल-बिरवा

सुप्रसिद्ध फ़िलिस्तीनी कवि-लेखक। कविता में निर्वासन, मातृभूमि, अस्मिता, प्रेम और प्रतिरोध के स्वर के लिए चिह्नित।

सुप्रसिद्ध फ़िलिस्तीनी कवि-लेखक। कविता में निर्वासन, मातृभूमि, अस्मिता, प्रेम और प्रतिरोध के स्वर के लिए चिह्नित।

महमूद दरवेश के उद्धरण

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मैं इस या उस राजनीतिक दल के विवाद का हिस्सेदार नहीं हो सकता।

जनरल युद्ध स्थल पर दुश्मनों के मृतकों की संख्या गिनता है जबकि कवि इस बात का हिसाब लगाता है कि युद्ध में कितने जीवित लोग मारे गए।

मैं महसूस करता हूँ कि मैं कुछ नहीं कर पाया हूँ। यही वह बात है जो मुझे अपने लेखन, शैली और प्रतीकों में सुधार के लिए मज़बूर करती है।

संभवतः क्योंकि मैं चाहनाओं पर पला-बढ़ा हूँ, मेरे लिए और चाहनाओं में जीना ठीक नहीं है और यह भी संभव है कि मेरी भावनाएँ बासी हो गई हों; संभव है तर्क ने भावनाओं पर विजय पा ली हो और विडंबना सघन हो गई हो। मैं वही आदमी नहीं रहा हूँ।

उम्मीद को बहुत ही सामान्य चीज़ों से पैदा होना चाहिए। प्रकृति की भव्यता, जीवन का सौंदर्य, उनकी क्षण भंगुरता से।

मरे हुए लोगों के बीच कोई वैर नहीं रहता। उनका एक ही दुश्मन होता हैः मृत्यु। रूपक स्पष्ट है। दोनों ओर के मृतक अब दुश्मन नहीं रहे हैं।

मैं कई स्मृतियों के प्रति ईमानदार नहीं रहा, लेकिन मैंने कोई अपराध नहीं किया।

मैं महसूस करता हूँ कि मैं शून्य हूँ और इसका मतलब है मैं अपने आप को निश्चय ही प्यार करता हूँ।

जो कवि लिखने बैठता है और यह नहीं महसूस करता कि वह पूरी तरह शून्य है, उसका विकास नहीं होगा और उसकी पहचान नहीं बनेगी।

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फ़िलिस्तीनी होना कितना कठिन है और किसी फ़लिस्तीनी के लिए लेखक या कवि होना तो और भी मुश्किल है...। इस तरह की गुलामी की स्थितियों में वह किस तरह से रचनात्मक स्वतंत्रता हासिल कर सकता है? और इस तरह के नृशंस दौर में वह किस तरह साहित्य की साहित्यिकता को बरकरार रख सकता है।

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कई बार समय समझदारी पैदा करता है।

हर सामान्य आदमी आधिपत्य में रहने से घृणा करता है।

ईर्ष्या एक मानवीय गुण है लेकिन जब यह घृणा में बदल जाती है तब बात अलग है। ऐसे भी लोग हैं जो मुझे साहित्यिक सरदर्द मानते हैं लेकिन मैं उन्हें बच्चों के रूप में देखता हूँ जिन्हें निश्चय ही अपने आध्यात्मिक पिता के ख़िलाफ़ विद्रोह करना चाहिए। उन्हें मेरी हत्या करने का अधिकार है लेकिन उन्हें मेरी हत्या एक ऊँचे स्तर पर करनी चाहिए एक पाठ में।

अगर कोई लेखक यह घोषणा करता है कि मेरी पहली किताब मेरी सबसे अच्छी किताब है, तो यह अच्छी बात नहीं है। मैं हर किताब के साथ आगे बढ़ता हूँ।

मैं जो राजनीति करता हूँ उससे बेहतर कविताएँ लिखता हूँ।

मेरे पास अपने जीवन के लिए या अपने देश की ज़िंदगी के लिए अर्थ खोजने का कोई और उपकरण नहीं है। यह मेरी सामर्थ्य में है कि मैं शब्दों के माध्यम से उन में सौंदर्य प्रदान करूँ और उनकी स्थिति को अभिव्यक्त करूँ। मैंने एक बार कहा था कि मैं शब्दों से अपने राष्ट्र के लिए और अपने लिए एक 'होमलैंड' (गृहक्षेत्र) बनाता हूँ।

अगर कोई उम्मीद नहीं भी है, तो भी उम्मीद तलाशने के लिए हम बाध्य हैं। बिना उम्मीद के हमारा कोई भविष्य नहीं है।

वृहत्तर अर्थों में प्रसन्नता कोई ऐसी यथार्थवादी खोज नहीं है। प्रसन्नता एक क्षण है। प्रसन्नता एक तितली है। मैं जब कोई रचना पूरी कर लेता हूँ तो मुझे प्रसन्नता महसूस होती है।

घर वही है जहाँ मैं सोता हूँ, पढ़ता हूँ और लिखता हूँ और वह कहीं भी हो सकता है। मैं बीस से ज़्यादा घरों में अब तक रह चुका हूँ और मैं सदा अपने पीछे दवाएँ, किताबें और कपड़े छोड़ जाता हूँ। मैं भाग जाता हूँ।

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प्रेम एक निजी मसला है जो दूसरों पर थोपा नहीं जा सकता।

मेरा कोई घर नहीं है। मैं घूमता रहा हूँ और इतनी तेज़ी से घर बदलता रहा हूँ कि इस शब्द के वास्तविक अर्थ में मेरा कोई घर नहीं रहा है।

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मन-मस्तिष्क को स्वस्थ रखने के लिए हमें कभी-कभी ज़रूरी चीज़ों को भूल जाना चाहिए। ऐसे समय में उम्मीद की बात करना बहुत कठिन है। इससे ऐसा लगेगा मानो हम इतिहास और वर्तमान की अनदेखी कर रहे हैं। मानो हम भविष्य को, जो इस समय घट रहा है, उससे काट कर देख रहे हैं। लेकिन जीने के लिए ज़रूरी है कि हम सप्रयास उम्मीद को तलाशें।

हम सब यहाँ तक कि विजेता भी परास्त हो जाएँगे। हमें यह आना चाहिए कि विजय के समय किस तरह का व्यवहार करना चाहिए और हार के समय किस तरह का। वह समाज जो नहीं जानता कि हार क्या चीज़ होती है, कभी भी वयस्क नहीं होता।

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मैं कविता की ताक़त पर विश्वास करता हूँ, जो मुझे आगे की ओर देखने और रोशनी की एक चमक को पहचानने के कारण प्रदान करती है।

कविता कुत्ती चीज़ साबित हो सकती है। इसमें अवास्तविक को वास्तविक में बदल देने की और वास्तविक को काल्पनिक में बदल देने की शक्ति है। इसमें एक ऐसे संसार की रचना करने की ताक़त है जो कि उस संसार से टकरा रही होती है जिसमें कि हम रहते हैं।

मैं कविता को आध्यात्मिक दवा की तरह देखता हूँ। जो मैं यथार्थ में नहीं पाता उसे मैं शब्दों में रच सकता हूँ। यह एक ज़बरदस्त माया (इल्यूज़न) है, पर है सकारात्मक।

किसी एक विशेष घर के प्रति मेरा कोई लगाव नहीं है। कुल मिलाकर घर कोई ऐसी चीज़ नहीं है जो लोग जमा करते हैं। एक घर के साथ स्थान और समाज जुड़ा होता है। मेरा कोई घर नहीं है।

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मुझे अपनी कविताओं के पाठ्यक्रम में लगाए जाने में कोई रुचि नहीं है।

मैं बहुत सारी चीज़ों की उम्मीद नहीं करता। इसलिए अगर कोई चीज़ काम कर जाती है तो वह महान प्रसन्नता की बात है। हताशा के साथ हास्य भी चलता है।

शांति राज्यों के बीच होती है कि चाहत पर आधारित होती है। एक शांति संधि कोई शादी की दावत नहीं होती।

मैं एक देशभक्त या एक हीरो या एक प्रतीक के तौर पर नज़र नहीं आना चाहूँगा। मैं एक सामान्य कवि ही दिखना चाहता हूँ।

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मैं रूपकों का कारीगर हूँ; प्रतीकों का नहीं।

इतिहास ने मुझे विडंबना का अर्थ समझाया है।

जब मुझे किसी दावत में जाना होता है तो मुझे लगता है कि मुझे दंडित किया जा रहा है।

मैं लौटने के अधिकार को नहीं हासिल करना चाहता।

मुझे लोगों की तभी ज़रूरत पड़ती है जब कोई काम हो। क्या यह स्वार्थपरता है, लेकिन मेरे पाँच-छह मित्र हैं। यह काफ़ी है। मेरे हज़ारों परिचित हैं पर उस का कोई अर्थ नहीं है।

लेखन मात्र हाथ से नहीं होता। प्रतिभा अंदर कहीं होती है। आपको बैठना आना चाहिए। अगर आप नहीं जानते कि बैठा कैसे जाता है तो आप नहीं लिख पाते। अनुशासन ज़रूरी है।

लाइलाज बीमारी उम्मीद से पीड़ित हैं।

हमारा सारा समय और समय-निर्धारण, गड़बड़ा चुका है।

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मैं वास्तव में पाठ्यक्रम में रखे जाने को पसंद नहीं करता क्योंकि छात्र सामान्यतः उन पर थोपे गए साहित्य से घृणा करते हैं।

मैं प्रेरणा पर ज़्यादा विश्वास नहीं करता। कई बार बेहतरीन आइडिया ऐसी जगहों पर आते हैं जो ख़ास अच्छी नहीं होतीं। जैसे कि ग़ुस्ल-ख़ाने में, जहाज़ में भी संभव है, कभी रेल में।

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