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डाक पर उद्धरण

मेरी डाक में आने वाले खतों में कुछ खत तो गालियों से ही भरे होते हैं। उन गालियों का तो मेरे ऊपर कोई असर नहीं होता, क्योंकि मैं इन गालियों को ही स्तुति समझता हूँ, परंतु वे लोग गालियाँ इसलिए नहीं देते कि मैं उनको स्तुति समझता हूँ बल्कि इसलिए कि मैं जैसा उनकी निगाह में होना चाहिए वैसा नहीं हूँ। एक वक़्त वह था जब वे मेरी स्तुति भी करते था। इसलिए गालियाँ देना या स्तुति करना तो दुनिया का एक खेल हूँ।

महात्मा गांधी