जवाहरलाल नेहरू के उद्धरण
जब इंसान भूखा रहता है, जब मरता रहता है, तब संस्कृति और यहाँ तक कि ईश्वर के बारे में बात करना मूर्खता है।
-
शेयर
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
यदि आपका दृष्टिकोण अच्छा है, तो प्रतिक्रिया भी अच्छी मिलेगी। अगर दृष्टिकोण ग़लत है, तो प्रतिक्रिया भी ग़लत ही मिलेगी।
-
शेयर
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
कोई भी तहज़ीब जो बुनियादी तौर पर ग़ैर-दुनियावी हो, हज़ारों साल तक अपने को क़ायम नहीं रख सकती।
-
शेयर
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
लोकतांत्रिक चुनावों का सारा मक़सद; बड़ी-बड़ी समस्याओं पर मतदाताओं के विचार को समझना, और मतदाताओं को उनके प्रतिनिधियों को चुनने की ताक़त प्रदान करना है।
-
शेयर
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
किसी न किसी तरह की तपस्या का ख़याल; हिंदुस्तानी विचारधारा का एक अंग है और ऐसा ख़याल न सिर्फ़ चोटी के विचारकों के यहाँ है, बल्कि साधारण अनपढ़ जनता में फैला हुआ है।
-
शेयर
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
हर राष्ट्र के लिए और हर व्यक्ति के लिए जिसको बढ़ना है, काम-काज और सोच-विचार के उन सँकरे घेरों को—जिनमें ज़्यादातर लोग बहुत अरसे से रहते आए हैं—छोड़ना होगा और समन्वय पर ख़ास ध्यान देना होगा।
-
शेयर
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
ग़लत नज़रिया होने पर शुरुआत में जो संस्कृति अच्छी चीज़ होती है; वो न केवल गतिहीन हो जाती है, बल्कि आक्रामक व कभी-कभी संघर्ष और घृणा का बीज बो देती है।
-
शेयर
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
दरअसल धर्म का अर्थ मज़हब या ‘रिलिजन’ से ज़्यादा विस्तृत है। इसकी व्यत्पत्ति जिस धातु-शब्द से हुई है—उसके मानी हैं ‘एक साथ पकड़ना।’
-
शेयर
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
सहमति या असहमति की बात केवल तब उठती है, जब आप चीज़ों को समझते हैं। अन्यथा यह एक अंधी असहमति होती है, जो किसी भी सवाल को लेकर एक सुसंस्कृत तरीक़ा नहीं हो सकता।
-
शेयर
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
कोई विश्वविद्यालय अपने को अगर जायज़ ठहरना चाहता है, तो उसे चाहिए कि सचाई और आज़ादी तथा इंसाफ़ के हक़ में ऐसे सूरमा-सवारों को तालीम दे और उन्हें दुनिया में भेजे, जो दमन और बुराई के ख़िलाफ़ बेधड़क लड़ सकें।
-
शेयर
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
अगर मेरे दिमाग़ में लिखे हुए इतिहास और कमोबेश जाने हुए वाक्यों के चित्र भरे हुए थे, तो मैंने अनुभव किया कि अनपढ़ किसान के दिमाग़ में भी एक चित्रशाला थी, हाँ! इसका आधार परंपरा, पुराण की कथाएँ और महाकाव्य के नायकों और नायिकाओं के चरित्र थे। इसमें इतिहास कम था, फिर भी चित्र काफ़ी सजीव थे।
-
शेयर
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
एक व्यक्ति जो दूसरों के विचार या राय को नहीं समझ सकता है, तो इसका मतलब यह हुआ कि उसका दिमाग़ और संस्कृति सीमित है।
-
शेयर
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
काम का अंदाज़ा यह है कि इस मुल्क में ऐसे कितने लोग हैं—जिनकी आँखों से आँसू बहते हैं, उनमें से कितने आँसू हमने पोंछे, कितने आँसू हमने कम किए। वह अंदाज़ा है इस मुल्क की तरक़्क़ी का, न कि इमारतें जो हम बनाएँ, या कोई शानदार बात जो हम करें।
त्याग के और ज़िंदगी से इनकार करने के ख़याल लोगों में उस वक़्त पैदा होते हैं, जब राजनीतिक या आर्थिक मायूसी का उन्हें सामना करना पड़ता है।
-
शेयर
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
अभावों में मरने की अपेक्षा संघर्ष करते हुए मरना अधिक अच्छा है, दुःखपूर्ण और निराश जीवन की अपेक्षा मर जाना बेहतर है। मृत्यु होने पर नया जन्म मिलेगा। और वे व्यक्ति अथवा राष्ट्र जो मरना नहीं जानते, यह भी नहीं जानते कि जिया कैसे जाता है।
जब व्यक्ति की स्वतंत्रता या शांति ख़तरे में हो, तब हम उदासीन नहीं रह सकते और न ही हमें रहना चाहिए। तब तो निरपेक्षता एक तरह से उन बातों के साथ धोखा होगी, जिनके लिए हमने संघर्ष किया है और जो हमारे उसूल हैं।
-
शेयर
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
मुनहसिर रहनेवाले कभी आज़ाद नहीं हुआ करते। मर्द और औरत का ताल्लुक़ मुक़म्मल आज़ादी और मुक़म्मल दोस्ती व सहयोग का होना चाहिए, जिसमें एक को दूसरे पर ज़रा भी मुनहसिर न रहना पड़े।
-
शेयर
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
हिंदुस्तान की औरतों को एक और काम भी करना है; और वह यह कि मर्दों के बनाए रीति-रिवाजों और क़ानूनों के अत्याचार से अपने को कैसे भी आज़ाद करें।
-
शेयर
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
अपने मुँह से अपनी तारीफ़ करना हमेशा ख़तरनाक-चीज़ होती है। राष्ट्र के लिए भी वह उतनी ख़तरनाक है, क्योंकि वह उसे आत्मसंतुष्ट और निष्क्रिय बना देती है, और दुनिया उसे पीछे छोड़कर आगे बढ़ जाती है।
भीड़ की सतही कार्यवाहियों की अपेक्षा, कला और साहित्य राष्ट्र की आत्मा को महान अंतर्दृष्टि प्रदान करते हैं। वे हमें शांति और निरभ्र विचार के राज्य में ले जाते हैं, जो क्षणिक भावनाओं और पूर्वाग्रह से प्रभावित नहीं होते।
वैज्ञानिक स्वभाव उस मार्ग की ओर संकेत करता है, जिसकी दिशा में आदमी को चलना चाहिए।
-
शेयर
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
आदमी के चारों तरफ़ जो अज्ञात शक्ति है, मज़हब ने उसके रहस्य और अचंभे की आदमी को अहमियत जताई है। लेकिन साथ ही उसने न सिर्फ़ उस अज्ञात को समझने की कोशिश की, बल्कि सामाजिक प्रयत्न को समझने की कोशिश को रोका भी है। जिज्ञासा और विचार को बढ़ावा देने की जगह उसने प्रकृति के सामने, स्थापित संप्रदाय के सामने, और सारी मौजूदा व्यवस्था के सामने—सिर झुकाने के फ़लसफ़े का प्रचार किया है।
-
शेयर
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
किसी इंसान, किसी प्रजाति या फिर किसी भी राष्ट्र की—कहीं न कहीं एक जड़ ज़रूर होती है।
-
शेयर
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
आदमी की ज़िंदगी पर विचार और जाँच; बिना किसी स्थाई आत्मा के लिहाज़ के होती है, क्योंकि अगर किसी ऐसी आत्मा की सत्ता है भी, तो वह हमारी समझ से परे है; मन को शरीर का अंग, मानसिक शक्तियों की एक मिलावट समझा जाता था।
-
शेयर
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
गंगा तो विशेष कर भारत की नदी है, जनता की प्रिय है, जिससे लिपटी हुई हैं भारत की जातीय स्मृतियाँ, उसकी आशाएँ और उसके भय, उसके विजयगान, उसकी विजय और पराजय! गंगा तो भारत की प्राचीन सभ्यता का प्रतीक रही है, निशानी रही है, सदा बलवती, सदा बहती, फिर वही गंगा की गंगा।
हम पर अपने अल्पसंख्यक समुदायों के साथ-साथ, उन सभी समुदायों को लेकर ख़ास ज़िम्मेदारी है, जो आर्थिक या शिक्षा के स्तर पर पिछड़े हुए हैं और जो भारत की कुल जनसंख्या का सबसे बड़ा हिस्सा है।
-
शेयर
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
अंग्रेज़ उन बातों में बड़े ईमानदार हैं, जिनसे उनका फ़ायदा हो सकता है।
-
संबंधित विषय : जवाहरलाल नेहरू
-
शेयर
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
किसी संघर्ष को चलाना और उसे ख़त्म करने का तरीका सबसे महत्तवपूर्ण तथ्य है। इतिहास बताता है कि भौतिक ताक़त का बहुत बड़ा रोल है। लेकिन वही यह भी बताता है कि कोई भी ऐसी ताक़त अंततोगत्वा नैतिक शक्तियों को झुठला नहीं सकती, और अगर कोई ताक़त ऐसा करने का जोख़िम ले भी तो वो ख़ुद को ही बर्बाद करेगी।
-
शेयर
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
सब मज़हबों के नज़रियों और उपदेशों में इतनी समानता है कि यह देखकर हैरत होती है कि लोग छोटी-छोटी, और ग़ैर-ज़रूरी बातों के बारे में झगड़ा करने की बेवकूफ़ी क्यों करते हैं।
जीवन चाहे वह किसी व्यक्ति का हो, समूह का हो या फिर किसी राष्ट्र या समाज का हो—उसे आवश्यक रूप से गतिशील, परिवर्तनीय और सतत बढ़ते रहने वाले होना चाहिए।
-
शेयर
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
एक हठवादी मत में तो ज़िंदगी से अलग हटकर भी यक़ीन क़ायम रखा जा सकता है, लेकिन इंसानी व्यवहार के एक चालू सिद्धांत को तो ज़िंदगी से अपना मेल बनाए रखना है, नहीं तो वह ज़िंदगी के रास्ते में रुकावट बन जाएगा।
-
शेयर
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
लोकतंत्र में हमें जीतना तो आना ही चाहिए, साथ ही गरिमा के साथ हार को स्वीकार करना भी आना चाहिए।
-
शेयर
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
जीतने या हारने का तरीक़ा क्या रहा—यह ज़्यादा महत्त्वपूर्ण बात है, न कि जीत या हार का परिणाम। वाजिब रास्ते पर चलते हुए हार जाना बेहतर है, बजाए ग़लत राह पर चलकर जीत हासिल करना।
-
शेयर
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
यह दुनिया लंबे समय तक शांतिपूर्वक नहीं रह सकती, अगर इसके आधे लोग ग़ुलाम बनाकर रखे जाएँ और उनसे घृणा की जाए।
-
शेयर
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
आदमी दूसरों से बहुत कुछ सीख सकता है, लेकिन हर ज़रूरी बात उसे अपनी ही खोज और अपने ही अनुभव से प्राप्त करनी पड़ती है।
-
शेयर
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
उपनिषदों में कहा गया है कि “आत्मा से बढ़कर कोई चीज़ नहीं।” यह समझा गया होगा कि समाज में पायदारी आ गई है, इसलिए आदमी का दिमाग़ व्यक्तिगत पूर्णता का बराबर ध्यान किया करता था, और इसकी खोज में उसने आसमान और दिल के सबसे अंदरूनी कोनों को छान डाला।
-
शेयर
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
भारत अपने शानदार अतीत के साथ एक बहुत प्राचीन देश है। लेकिन यह एक नवीन राष्ट्र भी है, जिसमें नई उमंगें और इच्छाएँ हैं।
-
शेयर
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
लोकतंत्र इसी पर टिका है कि लोग देश के मुद्दों पर सक्रिय होकर और अक़्लमंदी से जुड़ाव रखें, और चुनावों में हिस्सा लें—जिसका परिणाम सरकारों के गठन के रूप में सामने आता है।
-
शेयर
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
मुझे इसमें कोई संदेह नहीं है कि आध्यात्मिक चीज़ों और नैतिक मूल्य अंततः—अन्य चीज़ों से ज़्यादा महत्त्वपूर्ण हैं। लेकिन एक इंसान का यह कहकर बचना कि अध्यात्म उत्कृष्ट है, उसका सीधा मतलब यह है कि वह भौतिक और वास्तविक चीज़ों में कमतर है—यह अचंभित करता है। वह किसी भी तरीक़े को अपनाता नहीं है। यह अधोगति के कारणों का सामना करने से बचना है।
-
शेयर
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
सत्य के थोड़े से हिस्से को ही समझना और ज़िंदगी में उसे अमल में लाना, कुछ न समझने और अस्तित्व के रहस्य को खोज पाने की बेकार कोशिश में, इधर-उधर भटकने के मुक़ाबले में बेहतर है।
-
शेयर
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
उपनिषदों की रचना करने वालों में स्वतंत्रता के ख़याल के लिए बड़ा जोश था, और वे सब कुछ उसी रूप में देखना चाहते थे। स्वामी विवेकानंद इस पहलू पर हमेशा ज़ोर दिया करते थे।
-
शेयर
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
हम अपनी काल्पनिक सृष्टि से सत्य को ढकने की कोशिश करते हैं और असलियत से अपने को बचाकर, सपनों की दुनिया में विचरने का प्रयत्न करते हैं।
-
शेयर
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
मेरे देश के महान नेता महात्मा गांधी, जिनकी प्रेरणा और देखरेख में मैं बड़ा हुआ, उन्होंने हमेशा नैतिक मूल्यों पर ज़ोर दिया और हमें आगाह किया कि साध्य के फेर में कभी भी साधन को कमतर न किया जाए।
-
शेयर
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
मैं महसूस करता हूँ कि सार्वजनिक मसलों में लगा राजपुरुष या कोई भी व्यक्ति, वास्तविकताओं को झुठला नहीं सकता और न ही किसी अमूर्त सत्य के लिए कार्य ही कर सकता है।
-
शेयर
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
आदमी चाहे ईश्वर में विश्वास न रखे, फिर भी वह अपने को हिंदू कह सकता है। हिंदू धर्म सत्य की अनथक खोज है, हिंदू धर्म सत्य को मानने वाला धर्म है।
-
शेयर
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
आदमी बराबर एक साहसपूर्ण यात्रा में लगा हुआ है, उसके लिए न कहीं दम लेना है और न उसकी यात्रा का अंत है।
-
शेयर
- सुझाव
- प्रतिक्रिया