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हरिकृष्ण प्रेमी

1908 - 1974 | ग्वालियर, मध्य प्रदेश

हरिकृष्ण प्रेमी के उद्धरण

दया और क्षमा भी मानव के धर्म हैं, तो शक्तिवान होना और उपयुक्त समय पर देश और धर्म की रक्षा के लिए शक्ति का प्रयोग करना भी धर्म है।

नारी पुरुष से पूजा नहीं चाहती। वह जीवन में सहयोग चाहती है दुःख और सुख के साथ। तन और मन का विलीनीकरण। दो जीवनों का एक होना।

सारे ही धर्म एक समान बात कहते हैं। मनुष्यता ऊँचे गुणों को विकसित करना ही धर्म का उद्देश्य है।

नारी के हृदय का स्नेह उसका सबसे बड़ा बंधन है।

जो केवल ऐश्वर्य के पालने में पले हैं, वे ग़रीबों के दुःखों को नहीं जान सकते।

हम दुर्बल मनुष्य राग-द्वेष से ऊपर रहकर कर्म करना नहीं जानते, अपने अभिमान के आगे जाति के अभिमान को तुच्छ समझ बैठते हैं।

संपूर्ण पृथ्वी ही माँ का खप्पर है। अखिल विश्व ब्रह्मांड ही सर्वव्यापिनी, सर्वशक्तिमती, सृष्टि और मरण की क्रीड़ा में निरत माँ भवानी का मंदिर है।

हिंसा का अहिंसा से प्रतिशोध करने के लिए महाप्राण चाहिए।

परिस्थितियाँ ही मनुष्य में साहस का संचार करती हैं।

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