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हरिकृष्ण प्रेमी

1908 - 1974 | ग्वालियर, मध्य प्रदेश

हरिकृष्ण प्रेमी की संपूर्ण रचनाएँ

उद्धरण 19

नारी पुरुष से पूजा नहीं चाहती। वह जीवन में सहयोग चाहती है दुःख और सुख के साथ। तन और मन का विलीनीकरण। दो जीवनों का एक होना।

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दया और क्षमा भी मानव के धर्म हैं, तो शक्तिवान होना और उपयुक्त समय पर देश और धर्म की रक्षा के लिए शक्ति का प्रयोग करना भी धर्म है।

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सारे ही धर्म एक समान बात कहते हैं। मनुष्यता ऊँचे गुणों को विकसित करना ही धर्म का उद्देश्य है।

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जो केवल ऐश्वर्य के पालने में पले हैं, वे ग़रीबों के दुःखों को नहीं जान सकते।

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नारी के हृदय का स्नेह उसका सबसे बड़ा बंधन है।

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