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कल्हण

कश्मीर

कल्हण के उद्धरण

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संसार में कोई भी ऐसा नहीं है जो नीति का जानकार हो किंतु उसके प्रयोग से लोग विहीन होते हैं।

नदियों द्वारा समुद्र में डाला गया जल मेघों द्वारा पुनः मिल जाता है परंतु बनिए के घर रखी गई धरोहर फिर नहीं मिलती है।

जो वस्तु अपनी रक्षा के लिए (उपयोगी) समझी जाती है, (भाग्यवश) उसी से व्यक्ति का नाश हो जाता है।

जिस प्रकार पापियों का स्पर्श अंगों को दूषित करता है, उसी प्रकार उनका कीर्तन वाणियों को दूषित करता है, अतः उसकी अन्य नृशंसता का वर्णन नहीं किया गया है।

पराधीनता के कारण पशु का चित्त भी संतप्त हो उठता है।

जैसे वंशी के संपूर्ण छिद्रों में यदि वायु भरी जाए, तो वह कोई शब्द भी नहीं प्रकट कर सकती, उसी प्रकार अनेक मार्गों से संकल्पित विचार अवश्य ही निश्चय को नहीं प्राप्त होता।

लोग स्त्रियों को पुरुषों का उपकरण (भोग्य वस्तु) मानते हैं। किंतु उनकी यह धारणा मिथ्या है। परिणाम में तो यह देखा जाता है कि पुरुष ही नारियों के हाथ के खिलौने हैं।

निसर्गतरल नारी को नियंत्रित करने में कौन समर्थ हैं?

चंचल स्वभाव वाली यह संपत्ति जब तक है, तब तक उपकार के लिए यह अवसर प्राप्त है। सदा अभ्युदय प्राप्त करने वाली विपत्ति आने पर पुनः उपकार के लिए अवसर कहाँ से प्राप्त होगा?

सत्कर्मों का आचरण करने पर भी पापियों की दोषविकृति (सत्कर्माचरण) में विश्वास नहीं किया जा सकता।

मेरे पास बुद्धि है परंतु धनहीन मैं क्या करूँ?

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