

गुरु के उपदेश से तो मंदबुद्धि व्यक्ति भी शास्त्रों का अध्ययन कर सकते हैं, लेकिन काव्य तो किसी प्रतिभाशाली को कभी-कभी ही (सदा-सर्वदा नहीं) स्फुरित होता है।

उत्कृष्ट शिष्य को दी गई शिक्षक की कला अधिक गुणवती है जैसे मेघ का जल समुद्र की सीपी में पड़ने पर मोती बन जाता है।

धीरे चलना एक पुरानी बात लगने लगी है। शिक्षकों के लिए भी यह कठिन हो गया है कि वे धीरे-धीरे समझाएँ और ताबड़तोड़ रोज़ नया पाठ न पूरा करें। वे कहते हैं उन्हें हर हफ़्ते परीक्षा लेनी है, फिर धीरे कैसे चलें।

कर्म ही सबसे बड़ा शिक्षक है।