
धूमधाम से क्या प्रयोजन? जिनकी हम पूजा करते हैं, उन्हें तो हृदय में स्मरण करना ही पर्याप्त है। जिस पूजा में भक्तिचंदन और प्रेमकुसुम का उपयोग किया जाए, वही पूजा जगत् में सर्वश्रेष्ठ है। आडंबर और भक्ति का क्या साथ?

हे भगवान्! आपने अपने बहुत नाम प्रकट किए हैं, जिनमें आपने अपनी सब शक्ति भर दी है और आपने उनके स्मरण के लिए कोई काल भी सीमित नहीं किए हैं। आपकी ऐसी कृपा है परंतु मेरा ऐसा दुर्भाग्य है कि इस जीवन में मुझमें कोई भक्ति नहीं है।

काम पूरा हो जाने पर कोई भी उसके करने वाले को नहीं देखता—हित पर ध्यान नहीं देता, अतः सभी कार्यों को अधूरे ही रखना चाहिए।

वाणी से राम नाम लेते हुए यदि मन विषय की ओर दौड़े तो इसे भगवान का स्मरण नहीं वरन् विस्मरण समझना चाहिए।

अवलोकन, संभाषण, विलास, परिहास, क्रीड़ा, आलिंगन तो दूर रहे, स्त्रियों का स्मरण भी मन को विकृत करने में पर्याप्त है।
