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मुसलमान पर कविताएँ

भारतीय समाज में अल्पसंख्यक

होना भी बहुत जटिलताओं से भरा रहा है। सांप्रदायिकता के उभार ने समय-समय पर भारतीय समाज में धर्मनिरपेक्षता के मूल्य को क्षतिग्रस्त किया है। इस प्रक्रिया में सबसे अधिक आहत मुस्लिम मन और समाज हुआ है। इस चयन में भारत में मुस्लिम होने की जटिलता और मुस्लिम मन की काव्याभिव्यक्तियाँ शामिल की गई हैं।

हाथ और साथ का फ़र्क़

जावेद आलम ख़ान

अस्मिता

ज़ुबैर सैफ़ी

देश

तरुण भारतीय

मुसलमान

देवी प्रसाद मिश्र

हाशिए के लोग

जावेद आलम ख़ान

लेख

अनीता वर्मा

हलफ़नामा

असद ज़ैदी

सन् 1992

अदनान कफ़ील दरवेश

डॉल्टनगंज के मुसलमान

विशाल श्रीवास्तव

इस्लामाबाद

असद ज़ैदी

पूरब दिशा

असद ज़ैदी

वरना मारे जाओगे

अदनान कफ़ील दरवेश

बजरडीहा

अरमान आनंद

क़िबला*

अदनान कफ़ील दरवेश

नूर मियाँ

रमाशंकर यादव विद्रोही

निज़ामुद्दीन

देवी प्रसाद मिश्र

शब्द मुसलमान

उमा शंकर चौधरी

अकेला घर हुसैन का

निलय उपाध्याय

बड़ी-बी

अनिरुद्ध उमट

घर बेचना है

नवनीत पांडे

आहत विश्वास

जावेद आलम ख़ान

एक दिन जब सारे मुसलमान

अदनान कफ़ील दरवेश

हैदराबाद

अमिताभ

वह बूढ़ा मुसलमान

अशोक वाजपेयी

शाहिद

अनुज लुगुन

अली मियाँ

अनिरुद्ध उमट

अच्छा मुसलमान

रामकुमार कृषक

कोई तो काग़ज़ होगा

सौम्य मालवीय

मीलाद

जावेद आलम ख़ान

ख़तरा है

सौम्य मालवीय

अनचीन्ही पहचान

जावेद आलम ख़ान

उदास औरतों की गली

गुलज़ार हुसैन

यूँ होता

फ़िरोज़ ख़ान