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डर पर कविताएँ

डर या भय आदिम मानवीय

मनोवृत्ति है जो आशंका या अनिष्ट की संभावना से उत्पन्न होने वाला भाव है। सत्ता के लिए डर एक कारोबार है, तो आम अस्तित्व के लिए यह उत्तरजीविता के लिए एक प्रतिक्रिया भी हो सकती है। प्रस्तुत चयन में डर के विभिन्न भावों और प्रसंगों को प्रकट करती कविताओं का संकलन किया गया है।

दर्द

सारुल बागला

निष्कर्ष

शुभांकर

हाशिए के लोग

जावेद आलम ख़ान

बुरे समय में नींद

रामाज्ञा शशिधर

उपला

नवीन रांगियाल

भले ही यह न जानूँ

मिक्लोश राद्नोती

मेरा साथ न छोड़ना

गैब्रिएला मिस्ट्राल

2020

संजय चतुर्वेदी

मौत

अतुल

आकाँक्षा

नंदकिशोर आचार्य

डर

जॉन गुज़लॉव्स्की

बहुत परेशान हूँ

येहूदा आमिखाई

गिलहरी के प्रति

विलियम बटलर येट्स

एक भयानक कथा

बोरीस पस्तेरनाक

मृत्यु-भय

जॉन एशबेरी

तुम्हारी बाँहों में

मिक्लोश राद्नोती

चिकित्सालय में

किरसी कुन्नस

भय

तादेऊष रूज़ेविच

तूफ़ान का डर

रॉबर्ट फ्रॉस्ट

चुंबन

शुन्तारो तानीकावा

निर्जन में

थाओ छ्येन

मुक्ति का मार्ग

यानिस रित्सोस

जाड़े की एक रात

टॉमस ट्रांसट्रोमर

शांति, आतंक

मिक्लोश राद्नोती

चार्ली की उदास तिथि

रफ़ाइल अलबर्ती

क़वाफ़ी को पढ़ते हुए

यूजीनियों मोंताले

मर्सिया

अंचित

कोई गाता है

एरिष फ्रीड

मेरे माँ-बाप

स्टीफन स्पेंडर

डर

कार्लोस आकिन्दो द अमात

मोना लिसा 2020

विनोद भारद्वाज

आविष्कारक

रेने शार

गिद्ध कलरव

अणुशक्ति सिंह

अद्भुत समय

सुभाष मुखोपाध्याय

अचानक

मिक्लोश राद्नोती

बेवक़ूफ़

सुभाष मुखोपाध्याय

दुपहर में सपना

पेत्रे बाकेव्स्की

गीत

मिक्लोश राद्नोती

किस घनी तूफ़ानी रात ने

लियोपोल्ड सेडार सेंगोर

स्विच

शुन्तारो तानीकावा

दिसंबर

मिक्लोश राद्नोती