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डर पर कविताएँ

डर या भय आदिम मानवीय

मनोवृत्ति है जो आशंका या अनिष्ट की संभावना से उत्पन्न होने वाला भाव है। सत्ता के लिए डर एक कारोबार है, तो आम अस्तित्व के लिए यह उत्तरजीविता के लिए एक प्रतिक्रिया भी हो सकती है। प्रस्तुत चयन में डर के विभिन्न भावों और प्रसंगों को प्रकट करती कविताओं का संकलन किया गया है।

अँधेरे में

गजानन माधव मुक्तिबोध

उनका डर

गोरख पांडेय

नवस्तुति

अविनाश मिश्र

दरवाज़े

मानव कौल

डर

नरेश सक्सेना

मर्सिया

अंचित

हाशिए के लोग

जावेद आलम ख़ान

दर्द

सारुल बागला

उपला

नवीन रांगियाल

बुरे समय में नींद

रामाज्ञा शशिधर

निष्कर्ष

शुभांकर

मौत

अतुल

2020

संजय चतुर्वेदी

मरना

उदय प्रकाश

मेरा साथ न छोड़ना

गैब्रिएला मिस्ट्राल

क्रूरता

कुमार अम्बुज

आकाँक्षा

नंदकिशोर आचार्य

व्यवस्थाएँ

अविनाश मिश्र

कोई गाता है

एरिष फ्रीड

मेरे माँ-बाप

स्टीफन स्पेंडर

गिद्ध कलरव

अणुशक्ति सिंह

कवि साहिब

सुरजीत पातर

चार्ली की उदास तिथि

रफ़ाइल अलबर्ती

रात, डर और सुबह

नेहा नरूका

अद्भुत समय

सुभाष मुखोपाध्याय

मोना लिसा 2020

विनोद भारद्वाज

बेवक़ूफ़

सुभाष मुखोपाध्याय

डरता रह गया

सोमदत्त

मुक्ति का मार्ग

यानिस रित्सोस

चुंबन

शुन्तारो तानीकावा

भय

तादेऊष रूज़ेविच

जाड़े की एक रात

टॉमस ट्रांसट्रोमर

डर

जॉन गुज़लॉव्स्की

बहुत परेशान हूँ

येहूदा आमिखाई

गिलहरी के प्रति

विलियम बटलर येट्स

एक भयानक कथा

बोरीस पस्तेरनाक

मृत्यु-भय

जॉन एशबेरी

डर

कार्लोस आकिन्दो द अमात

हिन्दवी उत्सव, 27 जुलाई 2025, सीरी फ़ोर्ट ऑडिटोरियम, नई दिल्ली

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