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यौवन पर सवैया

यौवन या जवानी बाल्यावस्था

के बाद की अवस्था है, जिसे जीवनकाल का आरंभिक उत्कर्ष माना जाता है। इसे बल, साहस, उमंग, निर्भीकता के प्रतीक रूप में देखा जाता है। प्रस्तुत चयन में यौवन पर बल रखती काव्य-अभिव्यक्तियों को शामिल किया गया है।

आनि अचानक आनन में

कुमारमणि भट्ट

लहरैं उठें अंग उमंगन की

ठाकुर बुंदेलखंडी

हाथ छ-सात फिरै मग में

बेनी बेंतीवाले

जात न मो पै चलो सजनी

सुखदेव मिश्र

लखे मुख कंजन को भ्रम जानि

ललिताप्रसाद त्रिवेदी

मार लजावनहार कुमार हौ

ललिताप्रसाद त्रिवेदी