Font by Mehr Nastaliq Web

मृदुला गर्ग : सादगी, गहराई और ईमानदारी

मेरी औरतों ने कभी अपराधबोध नहीं महसूस किया। इससे लोगों को ठेस पहुँची। मेरा स्त्रीवाद यह नहीं कहता कि सब एक जैसी हों—मेरा विश्वास है कि हर औरत का अलग होना ही उसकी अस्ल पहचान है।

—मृदुला गर्ग, ‘द हिन्दू’, वर्ष 2010

25 अक्टूबर 1938 को कोलकाता में जन्मीं मृदुला गर्ग ने अर्थशास्त्र में स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त करने के बाद दिल्ली विश्वविद्यालय में अध्यापन भी किया; लेकिन साहित्य के संसार को उनकी प्रतीक्षा थी, इसीलिए तीन साल के अध्यापन के बाद उन्होंने फिर साहित्य से ही अपने जीवन को जोड़ लिया। 

मृदुला गर्ग के लेखन में थोथी घोषणाएँ नहीं हैं; बल्कि जीवन-संघर्षों से गुज़र रही वह स्त्री है जो नायिकाओं जैसी भले ही न दिखे, लेकिन जीवन के पेचों को खोलने के उपकरण उसके ही पास हैं। उनके लेखन में हुजूम की चाह रखने वाले नारे कम हैं, अधिक है—सधे हुए अंदाज़ में उस स्त्री-आत्म की झलक, जोकि सामाजिक उलझनों और दुरूह भाव-गाँठों से बँधी हुई है। 

मृदुला गर्ग का लेखन पाठक को ऐसे छूता है, जैसे कोई बंद खिड़की अचानक ही खुल पड़े और धूप का एक टुकड़ा अंदर आकर किसी सोई हुई आत्मा को छू ले। गहन अनुभवों से जन्मीं उनकी रचनाएँ हमें किसी चुप्पी को सौंप देती हैं। वे सच्ची लगती हैं, जैसे हमें कोई अपना दुःख सुना रहा हो।

‘चित्तकोबरा’ मृदुला गर्ग की लेखनी का वह ताप है, जिसने समाज की जड़ पर एक सधी हुई चोट की। इसकी नायिका किसी साँचे में ढलने वाली नहीं है। वह अपने ढंग से जीती है, प्रेम करती है, संबंध रचती है और ये सब वह बिना किसी अपराधबोध के करती है। वह सिर्फ़ सवाल नहीं उठाती, बल्कि मौन के भीतर छिपे उत्तर भी खोजती है। वह टूटती है, तो अपनी ही हड्डियों से फिर खड़ी होती है—दृढ़ और संपूर्ण।

‘कठगुलाब’ में मृदुला गर्ग स्त्री-अस्मिता को नई रोशनी में रचती हैं। ‘कठगुलाब’ के बारे में वह कहती हैं, ‘‘उपन्यास की हर स्त्री प्रवक्ता कहती है, ज़माना गुज़रा जब मैं स्त्री की तरह जी रही थी। अब मैं समय हूँ। वह जो ईश्वर से होड़ लेकर, अतीत को आज से और आज को अनागत से जोड़ सकता है।’’ इस उपन्यास में नारी न तो केवल प्रेम की प्रतीक्षा करती कोई छाया है, न भूमिकाओं से जकड़ी हुई कोई परंपरा—वह एक विचार है, एक प्रतिश्रुति, जो टकराती है, पर तक़रार से सुंदरता का फूल खिला देती है। वह समाज को अस्वीकार नहीं करती, उसे नया रूप देने का स्वप्न देखती है।

‘मैं और मैं’—मृदुला गर्ग का एक ऐसा उपन्यास है, जो दिल की गहराई में उतरता है। यह एक नहीं; बल्कि दो औरतों की कहानी है, जो असल में एक ही स्त्री के भीतर बसी हैं। एक वह है जो दुनिया की बात मानती है और दूसरी वह जो अपनी राह ख़ुद बनाना चाहती है। यही टकराव इस उपन्यास की आत्मा है। मृदुला गर्ग ने इस टकराव को बहुत ही सादे और साफ़ शब्दों में लिखा है। उनकी भाषा बहुत सहज है, जैसे कोई अपने मन से चुपचाप बातें कर रहा हो। इस कहानी की नायिका अकेली है, लेकिन वह कमज़ोर नहीं है। वह ख़ुद से सवाल करती है, उलझती है और धीरे-धीरे अपने भीतर की सच्चाई को पहचानती है।

ओविड ने कहा था, ‘‘कला, कला को छिपाने में है।’’ मृदुला गर्ग का लिखा हुआ इस पर खरा उतरता है। उनकी भाषा भारी-भरकम शब्दों से दूर, बिना किसी शोर-साज़िश के अपनी बात कह देती है। मृदुला गर्ग की भाषा किसी नारे या आंदोलन की भाषा नहीं है। वह आत्मा की भाषा है, जिसमें भावना है, बौद्धिकता है और सबसे ज़रूरी बात—सच की सादगी है। उनकी भाषा पाठक से बहस नहीं करती, बल्कि उसे अपने भीतर की आवाज़ सुनने को आमंत्रित करती है। यही उनकी लेखनी का जादू है कि वह चुपचाप बोलती है और बहुत कुछ कह जाती है। उनकी भाषा की सबसे बड़ी विशेषता उसकी पारदर्शिता है। जैसे कोई अंतरतम से बोल रहा हो—बिना आडंबर, बिना प्रदर्शन। उनके वाक्य छोटे हो सकते हैं, पर उनमें अर्थों की गहराई समंदर जैसी होती है। हर शब्द, हर विराम, एक अनुभूति बनकर उभरता है। ‘मैं और मैं’ में वह लिखती हैं, “मैं सोचती रही कि क्या मैं वही हूँ, जो मैं समझती हूँ, या वह जो लोग मुझे समझते हैं।” वह पहचान और आत्म-चेतना के सवाल को इतने सरल शब्दों में रख देती हैं कि पाठक रुक कर ख़ुद से यही प्रश्न पूछने लगता है।

मृदुला गर्ग का लेखन सिर्फ़ स्त्रियों की व्याख्या नहीं करता, वह पुरुषों को भी अपने भीतर झाँकने का अवसर देता है। उन्होंने स्त्री-पुरुष संबंधों की पारंपरिक परिभाषाओं को खंडित किया और दिखाया कि प्रेम में कोई ऊँच-नीच नहीं, कोई सत्ता-संघर्ष नहीं—प्रेम बराबरी है, आत्मीयता है। 

मृदुला गर्ग के व्यंग्य-लेख भी उतने ही सशक्त हैं। ‘कटाक्ष’ और ‘कर लेंगे सब हज़म’ जैसे संग्रहों में उन्होंने समाज की खोखली नैतिकताओं और दिखावे की परतें बड़ी सहजता से उधेड़ी हैं। उनके व्यंग्य-लेखों में शब्दों की जो धार है; वह कोरी चोट नहीं करती, न सिर पर हथौड़ा मारती है। वह बस मुस्कुराकर सोचने पर विवश कर देती है। उनकी लेखनी में व्यंग्य एक गहरा सौंदर्य है; जहाँ विद्रूपताओं पर वह ऐसे कटाक्ष करती हैं, जैसे फूल काँटों को छूकर भी मुस्कुरा देते हैं। ‘‘सच बोलना हमेशा आसान नहीं होता, पर झूठ बोलने से सस्ता भी नहीं।’’ यह उनका वाक्य नहीं, उनका तेवर है।

मृदुला गर्ग की सबसे बड़ी ताक़त यह है कि वह बिना ज़ोर दिए बात कहती हैं और उनकी बात लंबे समय तक पाठक के भीतर बनी रहती है। उनका लेखन चिल्लाता नहीं, लेकिन भीतर तक सुनाई देता है। सादगी, गहराई और ईमानदारी—यही उनके लेखन का अस्ल चेहरा है।

~~~

समादृत कथाकार मृदुला गर्ग इस बार के ‘हिन्दवी उत्सव’ में बतौर वक्ता आमंत्रित हैं। ‘हिन्दवी उत्सव’ से जुड़ी जानकारियों के लिए यहाँ देखिए : हिन्दवी उत्सव-2025

'बेला' की नई पोस्ट्स पाने के लिए हमें सब्सक्राइब कीजिए

Incorrect email address

कृपया अधिसूचना से संबंधित जानकारी की जाँच करें

आपके सब्सक्राइब के लिए धन्यवाद

हम आपसे शीघ्र ही जुड़ेंगे

28 नवम्बर 2025

पोस्ट-रेज़र सिविलाइज़ेशन : ‘ज़िलेट-मैन’ से ‘उस्तरा बियर्ड-मैन’

28 नवम्बर 2025

पोस्ट-रेज़र सिविलाइज़ेशन : ‘ज़िलेट-मैन’ से ‘उस्तरा बियर्ड-मैन’

ग़ौर कीजिए, जिन चेहरों पर अब तक चमकदार क्रीम का वादा था, वहीं अब ब्लैक सीरम की विज्ञापन-मुस्कान है। कभी शेविंग-किट का ‘ज़िलेट-मैन’ था, अब है ‘उस्तरा बियर्ड-मैन’। यह बदलाव सिर्फ़ फ़ैशन नहीं, फ़ेस की फि

18 नवम्बर 2025

मार्गरेट एटवुड : मर्द डरते हैं कि औरतें उनका मज़ाक़ उड़ाएँगीं

18 नवम्बर 2025

मार्गरेट एटवुड : मर्द डरते हैं कि औरतें उनका मज़ाक़ उड़ाएँगीं

Men are afraid that women will laugh at them. Women are afraid that men will kill them. मार्गरेट एटवुड का मशहूर जुमला—मर्द डरते हैं कि औरतें उनका मज़ाक़ उड़ाएँगीं; औरतें डरती हैं कि मर्द उन्हें क़त्ल

30 नवम्बर 2025

गर्ल्स हॉस्टल, राजकुमारी और बालकांड!

30 नवम्बर 2025

गर्ल्स हॉस्टल, राजकुमारी और बालकांड!

मुझे ऐसा लगता है कि दुनिया में जितने भी... अजी! रुकिए अगर आप लड़के हैं तो यह पढ़ना स्किप कर सकते हैं, हो सकता है आपको इस लेख में कुछ भी ख़ास न लगे और आप इससे बिल्कुल भी जुड़ाव महसूस न करें। इसलिए आपक

23 नवम्बर 2025

सदी की आख़िरी माँएँ

23 नवम्बर 2025

सदी की आख़िरी माँएँ

मैं ख़ुद को ‘मिलेनियल’ या ‘जनरेशन वाई’ कहने का दंभ भर सकता हूँ। इस हिसाब से हम दो सदियों को जोड़ने वाली वे कड़ियाँ हैं—जिन्होंने पैसेंजर ट्रेन में सफ़र किया है, छत के ऐंटीने से फ़्रीक्वेंसी मिलाई है,

04 नवम्बर 2025

जन्मशती विशेष : युक्ति, तर्क और अयांत्रिक ऋत्विक

04 नवम्बर 2025

जन्मशती विशेष : युक्ति, तर्क और अयांत्रिक ऋत्विक

—किराया, साहब... —मेरे पास सिक्कों की खनक नहीं। एक काम करो, सीधे चल पड़ो 1/1 बिशप लेफ़्राॅय रोड की ओर। वहाँ एक लंबा साया दरवाज़ा खोलेगा। उससे कहना कि ऋत्विक घटक टैक्सी करके रास्तों से लौटा... जेबें

बेला लेटेस्ट