सांप्रदायिकता पर कविताएँ

सांप्रदायिकता संप्रदाय

विशेष से संबद्धता का प्रबल भाव है जो हितों के संघर्ष, कट्टरता और दूसरे संप्रदाय का अहित करने के रूप में प्रकट होता है। आधुनिक भारत में इस प्रवृत्ति का उभार एक प्रमुख चुनौती और ख़तरे के रूप में हुआ है और इससे संवाद में कविताओं ने बढ़-चढ़कर भूमिका निभाई है। इस चयन में सांप्रदायिकता को विषय बनाती और उसके संकट को रेखांकित करती कविताएँ संकलित की गई हैं।

मुसलमान

देवी प्रसाद मिश्र

सफ़ेद रात

आलोकधन्वा

सन् 1992

अदनान कफ़ील दरवेश

तो फिर वे लोग कौन हैं?

गुलज़ार हुसैन

मारे जाएँगे

राजेश जोशी

लेख

अनीता वर्मा

अस्मिता

ज़ुबैर सैफ़ी

कोरोना

अमिताभ

हाशिए के लोग

जावेद आलम ख़ान

ज़िबहख़ाने

अखिलेश श्रीवास्तव

हिंदू सांसद

असद ज़ैदी

बूथ पर लड़ना

व्योमेश शुक्ल

गंगा मस्जिद

फ़रीद ख़ाँ

हलफ़नामा

असद ज़ैदी

डॉल्टनगंज के मुसलमान

विशाल श्रीवास्तव

दंगा

चंदन सिंह

अंबेडकरवादी हाइकु

मुसाफ़िर बैठा

फ़हमीदा आपा के नाम

सत्येंद्र कुमार

इस्लामाबाद

असद ज़ैदी

पोस्टमार्टम की रिपोर्ट

सर्वेश्वरदयाल सक्सेना

शमीम

पंकज चतुर्वेदी

उन्होंने कहा अंत

ऋतु कुमार ऋतु

बर्बरता के उत्स

ऋतु कुमार ऋतु

कुछ सवाल

पंकज चतुर्वेदी

मैं लाशें फूँकता हूँ

मनीष कुमार यादव

नूर मियाँ

रमाशंकर यादव विद्रोही

कर्बला

राजेश जोशी

एक दिन जब सारे मुसलमान

अदनान कफ़ील दरवेश

नफ़रत के ज़हर से

अजीत रायज़ादा

तेईस

दर्पण साह

छह दिसंबर

नरेश सक्सेना

कारन सों गोरन की घिन को

बदरीनारायण चौधरी 'प्रेमघन'

नफ़रत करो

राजेश जोशी

हरा रंग

हरि मृदुल

मेरे अपराध

नवनीत पांडे

ख़ुदा, रामचंदर में यारी है ऐसी

रमाशंकर यादव विद्रोही

दंगे के बाद

अच्युतानंद मिश्र

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