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रामधारी सिंह दिनकर

1908 - 1974 | सिमरिया, बिहार

समादृत कवि और निबंधकार। ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित।

समादृत कवि और निबंधकार। ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित।

रामधारी सिंह दिनकर के उद्धरण

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नारी केवल नर को रिझाने अथवा उसे प्रेरणा देने को नहीं बनी है। जीवन-यज्ञ में उसका भी अपना हिस्सा है और वह हिस्सा घर तक ही सीमित नहीं, बाहर भी है। जिसे भी पुरुष अपना क्षेत्र मानता है, वह नारी का भी कर्मक्षेत्र है।

धर्म संपूर्ण जीवन की पद्धति है। धर्म जीवन का स्वभाव है। ऐसा नहीं हो सकता कि हम कुछ कार्य तो धर्म की मौजूदगी में करें और बाक़ी कामों के समय उसे भूल जाएँ।

अर्धनारीश्वर केवल इसी बात का प्रतीक नहीं है कि नारी और नर जब तक अलग हैं तब तक दोनों अधूरे हैं, बल्कि इस बात का भी कि जिस पुरुष में नारीत्व नहीं, वह अधूरा है एवं जिस नारी में पुरुषत्व नहीं, वह भी अपूर्ण है।

परंपरा और विद्रोह, जीवन में दोनों का स्थान है। परंपरा घेरा डालकर पानी को गहरा बनाती है। विद्रोह घेरों को तोड़कर पानी को चोड़ाई में ले जाता है। परंपरा रोकती है, विद्रोह आगे बढ़ना चाहता है। इस संघर्ष के बाद जो प्रगति होती है, वही समाज की असली प्रगति है।

गांधी, बुद्ध, अशोक नाम हैं बड़े दिव्य सपनों के, भारत स्वयं मनुष्य जाति की बहुत बड़ी कविता है।

दुःख-दर्द, निःसंगता और अकेलापन, ये जीनियस के भाग्य में होते हैं, क्योंकि काल के वह विरुद्ध सोचता है। जीनियस मानता है कि राजमत और लोकमत, दोनों त्रासक हो सकते हैं।

नए ज्ञान के प्रति भारत हमेशा ही उदार रहा है। नये धर्मों, नई संस्कृतियों और नई विचारधाराओं को अपना कर भारत भी परिवर्तित होता रहा है, लेकिन विचित्रता की बात यह है कि भारत जितना ही बदलता है, उतना ही वह अपने आत्मस्वरूप के अधिक समीप पहुँच जाता है।

प्रतिभाएँ, साधारणतया, गाँवों में जन्म लेती हैं, महानगरों में आकर विकास पाती हैं और एक पीढ़ी के बाद फिर नष्ट हो जाती हैं, क्योंकि जाति की असली ऊर्जा का निवास महानगरों में नहीं होता। महानगर वह स्थान है जहाँ शक्ति और प्रतिभा की दुकान चलाई जाती है, ये शक्तियाँ वहाँ पैदा नहीं होतीं।

भाषा की खानें दो हैं। एक पुस्तकों में, दूसरी जनता की जबान पर।

केवल भारत ही एक ऐसा देश है, जिसका अतीत कभी मरा नहीं, वह बराबर वर्तमान के रथ पर चढ़ कर भविष्य की और चलता रहा है। भारत का अतीत कल भी जीवित है और आगे भी जीवित रहेगा।

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