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पीएत्रो चिताती

1930 - 2022

प्रसिद्ध इतालवी लेखक, साहित्यिक आलोचक और जीवनी लेखक।

प्रसिद्ध इतालवी लेखक, साहित्यिक आलोचक और जीवनी लेखक।

पीएत्रो चिताती के उद्धरण

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धरती की क़ैद में सीमित, हम मृत्यु की इच्छा का अनुभव करते हैं—जैसा कि प्लेटो के यहाँ होता है।

अगर टॉलस्टॉय ने सारी ज़िंदगी प्रसन्नता के भीतर छिपी रहस्यमय शक्तियों की खोज में लगाई थी, तो काफ़्का प्रसन्नता का सामना भी नहीं कर पाता था—उसे भान था कि जीवन का आनंद उसे नियति की आवाज़ के प्रति बेपरवाह बना देगा।

वह जानता था कि भले लोग रातों को सोया करते हैं—बच्चों की तरह अपनी नींद में सुरक्षित जहाँ एक दैवीय हाथ उन्हें दुस्वप्नों से बचाए रखता है।

जब हम कहानी शुरू करते हैं कायान्तरण हो चुका होता है।

बच्चों की आँखों से देखे गए वयस्क बस खाना खाते हैं और संभोग करते हैं।

लेकिन उसे यह भी मालूम था कि अगर वह अंधकार को तर्क के सामने लाएगा और इसे किसी बौद्धिक खेल में बदलेगा जैसा कि एडगर एलन पो ने किया था उसका सारा काम व्यर्थ हो जाएगा।

काफ़्का के यहाँ कोई मुक्ति है, छलांग, उड़ान, आसमान में खुलने वाला कोई प्रवेशद्वार।

काफ़्का को उस अजनबी की पूरी पहचान थी जिसे वह अपने अंदर लिए चलता था—वह जानता था कि उसे शांति चाहिए क्योंकि वह मृत्यु का अभिलाषी था।

हर कोई उसकी आँखों से आकर्षित हो जाया करता जिन्हें वह बहुत ज़्यादा खुली रखता था; कभी-कभी घूरती हुई वे आँखें फ़ोटोग्राफ़ों में मैग्नीशियम की आकस्मिक चमक के कारण किसी विक्षिप्त या स्वप्नदृष्टा की लगती थीं।

ब्रह्मांड एक क़ैद है जिस से कोई बाहर नहीं जा सकता। उम्मीद, जो मृत्युशैय्या पर पुनर्जीवित होती लगती है, तुरंत नकार दी जाती है। इसके बावजूद उम्मीद का अटूट धागा बना रहता है।

फ़्लाबेयर की तरह वह भी कहा करता था कि वे सारे लोग जिनके बच्चे होते हैं, वे सत्य के साथ रह रहे होते हैं।

काफ़्का का लेखन शून्य में किसी पांसे के फेंके जाने जैसा होता है, जो दिमाग़ में सकने वाली संभावनाओं की सीमा से आगे तक संभव विरोधाभासी सिद्धांतों को एक साथ सामने लेकर आता है।

उसका मानवेतर प्रवाह उसके घावों को और गहरा कर दिया करता था—बजाए उन्हें सहलाने के।

नींद सबसे पवित्र दैवीय वस्तु होती है जो केवल पवित्र लोगों की पलकों पर उतरती है।

काफ़्का के ‘द ग्रेट वॉल ऑफ़ चाइना’ में ईश्वर एक ख़ाली स्थान है—एक अनुपस्थित और मरती हुई आकृति, विनम्रता की एक मरुमारीचिका।

जिन्हें नींद नहीं आती वे अपराधी लोग होते हैं क्योंकि उन्हें आत्मा की शांति की बाबत कुछ पता नहीं होता और वे अपनी सनकों से प्रताड़ित होते रहते हैं।

कुछ ज़बरदस्त सूक्तियाँ जिनमें कहानी के सूत्र तक पाए जा सकते हैं—आदमी की त्रिशंकु स्थिति की ओर इशारा करती हैं।

बॉदलेयर की दुष्टता की तरह; काफ़्का के यहाँ दुष्टता पल-पल अपनी भूमिका बदलती आज तक की सबसे बड़ी अभिनेत्री है, जबकि भलाई एक ऐसी अविभाजित साधारणता है जिसे अभिनय करना नहीं आता।

ऐसे मौक़ों पर जहाँ हर दूसरा लेखक भरपूर शब्दों का प्रयोग करता, काफ़्का हमारे समक्ष किसी खोखल की भीषण चुप्पी प्रस्तुत करता है।

सभी अपराधियों की तरह वह भी अनिद्रा का शिकार था। शाम को उसे नींद जाती थी पर एक घंटे में वह फिर जाग जाता था मानो उसने अपना सिर ग़लत जगह पर रखा हो।

हम दोहरे हैं—स्वर्ग और धरती से बुने हुए।

आर्किमिडीज़ की तरह उसने वह लीवर खोज लिया था जिसी मदद से दुनिया को उठाया जा सकता था।

जब काफ़्का का यूलिसिस मोहिनियों के समुंदर में पहुँचता है; वे गा नहीं रही होती हैं, वे समझती हैं कि वे उस पर ख़ामोशी की मदद से विजय पा लेंगी या वे उसके चेहरे से टपक रही अतीव प्रसन्नता को देख कर गाना भूल जाती हैं।

‘हिस्ट्री आफ डेविल’ में उसने पढ़ा था कि वर्तमान कैरिबियन में रात में काम करने वाले को संसार का सृष्टा माना जाता है।

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उसने पाया कि सतत आत्मविवेचना से आदमी नक़ली की तरफ़ बढ़ने लगता है।

बिना किसी कथावाचक की सहायता के, बिना किसी व्याख्या के, हम काफ़्का की महान किताबों से इस तरह गुज़रते हैं जैसे उसी रहस्य से होकर गुज़र रहे हों।

वह साहित्य से प्रेम करता था लेकिन वह सौंदर्यवादी का विलोम था। उसका मानना था कि मनुष्य के सबसे महान कर्म दानशीलता से प्रेरित होना चाहिए जैसा कि ग्रेगोर अपने परिवार के लिए ख़ुद को जला कर करता है।

अपनी कोठरी में ‘अमेरिका’ या ‘द कासल’ या ‘द ट्रायल’ लिखते हुए काफ़्का ने कभी किसी किताब का ख़ाका नहीं बनाया।

प्लेटो की ‘रिपब्लिक’ की एक कथा में मनुष्य गुफ़ा की दीवारों पर आदर्श संसार की छायाएँ देखते हैं। काफ़्का के यहाँ वह गुफ़ा एक आधुनिक रेलवे सुरंग बन जाती है।

वास्तविकता का पहला चिन्ह उसका अवास्तविक होना था। हर चीज़ बेहद नाज़ुक, अनिश्चित, असंगत और दरारों से भरपूर थी।

पीढ़ी की निरंतरता की सुनिश्चितता से मिलने वाली शांति में हम अपने तनावों से मुक्ति पाते हैं।

उसका लेखन लावा के महान प्रवाह जैसा होता था जिसमें अध्याय होते थे पैराग्राफ़ विराम चिन्ह—उन्हें बाद में जोड़ा जाता था। वह बहुत कम संशोधन किया करता था।

हर आकृति का सिर्फ़ एक अर्थ होता है जब वह बाक़ी आकृतियों के रू-ब-रू होती है; हर वाक्य को स्वतंत्र तरीक़े से समझा जा सकता है चाहे उसे किताब की संपूर्णता से अलग कर के ही क्यों देखा जाए।

टॉलस्टॉय के ठीक विपरीत, काफ़्का समय के संक्षिप्तीकरण का पत्थर नहीं है। वह वर्तमान के दृश्यों को इकट्ठा करता चलता है जिन्हें उसका चरित्र मिनट-दर-मिनट जीता है।

अपनी आत्मा की गहराइयों में उसे और बहुत ज़्यादा चाहिए था। वह यातना सहना चाहता था, वह ख़ुद को बलिदान कर देना चाहता था, भस्म कर दिया जाना चाहता था वह—भूसे के ढेर की तरह जिसकी नियति गर्मियों में आग में जल जाना होती है।

चाहे वह जो भी करता वह अपने आप को अपराधी समझता था—एक महान पापी।

वह अपनी प्रेरणा पर विश्वास नहीं करता था। उसे लगता था कि वह बिना रुके किसी पहाड़ की चोटी पर पहुँच जाता था पर वही एक पल को भी नहीं ठहर पाता

कहानी उस जगह थी जहाँ हर चीज़ नियत और सही राह पर रखी जाती थी।

वह उन लेखकों में नहीं था जो हर सुबह अपने काम की मेज़ पर बैठा करते हैं—प्रेरणा आती थीं और चली जाती थी। वह शांत होकर वर्षों तक के लिए उसे छोड़कर जा सकती थी जिसके कारण वह बेहद दुखी हो जाता था।

काफ़्का ने अलग-अलग गति से चल रहे दो समयों की आक्रामकता से जगी टूटन का अनुभव किया था लेकिन जैसे ही वह लिखना शुरू करता था; उसकी शैली में प्रवाह और नियमितता जाती, उसकी पानीदार बोलती आवाज़ उसे अनंत रात ही नवाज़ सकती थी।

काफ़्का के जीवन में कई अविस्मरणीय दिन थे—जैसा लुईस कैरोल ने कहा था उन पर सफ़ेद पत्थरों के निशान लगे हुए थे या कहा जाए जिन पर दुर्भाग्य के काले पत्थरों के निशान थे।

वह स्वयं कुछ नहीं था—वह एक युद्ध का मैदान था जहाँ असंख्य दुश्मन एक-दूसरे से लड़ते रहते थे—वे सारे उसी के भीतर से निकले थे और एक-दूसरे को औरों के ऊपर फेंका करते थे।

गुंटर आंदर्स का कहना है—इस किताब 'द ट्रायल' में एक ख़राब घड़ी है जिसकी घंटे वाली सुई ज़रा भी हिलती जबकि मिनट वाली पागल रफ़्तार से भागती जाती है।

काफ़्का की उत्सुकता अनन्त थी।

जब हम कहानी शुरू करते हैं कायान्तरण हो चुका होता है।

चीज़ों की नक़ल कर पाने की उसकी प्रतिभा उसे यह मौक़ा देती थी कि वह हर पल अपने आप को ख़ुद से अलग कर सके और सबसे ठंडे न्यायाधीश की तरह अपने आप को बाहर से देख और परख सके।

उस विराट त्रासदी के लिए ‘पौरुषातिरेक’ एक कमज़ोर शब्द लगता है जो उसके कमरे की चार दीवारों और ख़ाली पन्नों के दरम्यान लगातार घटा करती थी।

रात की गहराई में अकेले लिखते हुए उसने अपने भीतर छिपी हुई और जड़ हो गई हर चीज़ को मुक्त किया और इस तरह उसे एक ऐसी ख़ुशी मिलती थी जो उसके बर्फ़ जैसे हाथों और काँपते दिल को गर्मा देती थी।

वह चाहता था कि दिन और गर्मियों, सूर्योदय और सूर्यास्त को ख़त्म कर समय को एक अंतहीन शरद की रात में बदल देता। उसके चारों तरफ़ एक धीर-गंभीर गतिहीनता होती और ऐसा लगता था मानो संसार उसे भूल गया था।

क़ैद काफ़्का की महानता का स्त्रोत थी। उसके बिना वह रह नहीं सकता था।

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