जॉन बर्जर के उद्धरण
कोई इसी जीवन में अमरता को महसूस करने के सबसे क़रीब पहुँच सकता है तो शायद—काम्य होकर।
अनुवाद : अखिलेश सिंह
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अनावृत होना यानी स्वयं का होना है, जबकि नग्नता दूसरों के द्वारा नग्न देखा जाना है—जिसकी तस्दीक़ स्वयं के लिए नहीं होती।
अनुवाद : अखिलेश सिंह
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आधुनिक काल का ग़रीब, दया का पात्र नहीं समझा जाता; बल्कि उसे कचरे की तरह हटा दिया जाता है। बीसवीं सदी की उपभोक्ता अर्थव्यवस्था में पहली ऐसी संस्कृति की निर्मिति हुई, जिसके लिए भिखारी होना—कुछ नहीं होने का तक़ाज़ा है।
अनुवाद : अखिलेश सिंह
सारी बातें जो घटित होती हैं; अगर उन्हें नाम दिया जा सके, तो कहानियों की कोई ज़रूरत नहीं रहेगी।
अनुवाद : अखिलेश सिंह
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एक पुरुष की उपस्थिति कुछ ऐसे आशय रखती है कि वह तुम्हारे लिए या तुम्हारे समक्ष क्या करने में समर्थ है। जबकि इसके विपरीत, स्त्री की उपस्थिति निश्चित करती है कि उसके साथ क्या किया जा सकता है और क्या नहीं।
अनुवाद : अखिलेश सिंह
मेरी प्रेयसी! तुम्हारे होंठ मधु के छत्ते की तरह हैं : मधु और दुग्ध तुम्हारी जिह्वा के तल में हैं और तुम्हारे वस्त्रों की गंध मेरे घर की गंध जैसी है।
अनुवाद : अखिलेश सिंह
तुमने एक नग्न औरत का चित्र बनाया, क्योंकि उसे देखने में तुम्हें मज़ा आता रहा, फिर उसके हाथ में एक दर्पण पकड़ा दिया और इसे नाम दिया—वैनिटी। इस तरह तुमने उस औरत की नैतिक निंदा की, जिसकी नग्नता को तुमने अपने मज़े के लिए चित्रित किया था।
अनुवाद : अखिलेश सिंह
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जब आप प्रेम में होते हैं तो प्रेयसी के दिख जाने में ही एक परिपूर्णता होती है, शब्दों और अपनत्व से जिसकी कोई तुलना नहीं है—एक ऐसी पूर्णता जिसकी क्षणिक समरूपता—संभोग क्रिया ही हो पाती है।
अनुवाद : अखिलेश सिंह
हमारे देखने और जानने के बीच का रिश्ता हमेशा अनसुलझा ही रहा है। हर शाम हम सूरज को अस्त होते देखते हैं। हम जानते हैं कि धरती सूरज से दूर हट रही है, फिर भी इसके बारे में हमारी जानकारी और व्याख्या—कभी भी पूरी तरह दृश्य के लिए उपयुक्त नहीं होती है।
अनुवाद : अखिलेश सिंह
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कहानी पढ़ते हुए हम उसी में बस जाते हैं। पुस्तक का आवरण, चार दीवारों और एक छत जैसा लगने लगता है। आगे जो कुछ होने वाला है; वह कहानी की चार दीवारों के भीतर ही होगा और यह इसलिए संभव है, क्योंकि कहानी का स्वर हरेक चीज़ पर नियंत्रण कर लेता है।
अनुवाद : अखिलेश सिंह
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अतीत कोई ऐसी शय नहीं है, जिसके हम क़ैदी हों। हम अतीत के साथ एकदम अपनी इच्छा के अनुरूप कुछ कर सकते हैं। जो हम नहीं कर सकते, वह है अतीत के परिणामों को बदलना।
अनुवाद : अखिलेश सिंह
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व्यक्तिगत-सामाजिक ईर्ष्या के एक आमफ़हम मनोभाव हुए बिना, ग्लैमर का अस्तित्व नहीं हो सकता।
अनुवाद : अखिलेश सिंह
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आत्मकथा अकेलेपन के बोध से शुरू होती है—यह एक अनाथ विधा है।
अनुवाद : अखिलेश सिंह
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इतिहास हमेशा किसी वर्तमान और उसके अतीत के बीच एक रिश्ता क़ायम करता है। फलस्वरूप वर्तमान का भय अतीत को रहस्यमय बनाने की ओर ले जाता है।
अनुवाद : अखिलेश सिंह
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जब हम दुःख से गुज़रते हैं तो हम अपने बिल्कुल शुरुआती बचपन में लौटते हैं, क्योंकि वही वह समय है जब हमने पहली बार ‘पूरी तरह खोने’ का अनुभव करना सीखा था, बल्कि यह समय उससे भी कहीं अधिक था। बचपन वह समय है, जब हम अपनी पूरे जीवन की तुलना में कहीं अधिक ‘पूरी तरह खो देने’ के अनुभवों से गुज़रते हैं।
अनुवाद : अखिलेश सिंह
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मासूम रह जाना, अनभिज्ञ रह जाना भी हो सकता है।
अनुवाद : अखिलेश सिंह
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कोई भी सच्ची चित्रकारी किसी अनुपस्थिति का स्पर्श करती है—एक ऐसी अनुपस्थिति, जिसे उस चित्रकारी के अभाव में हम जान नहीं पाते।
अनुवाद : अखिलेश सिंह
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पुरुष स्त्रियों को निहारते हैं, स्त्रियाँ अपने निहारे जाने को देखती हैं।
अनुवाद : अखिलेश सिंह
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कोई एक कथा दुबारा कभी इस तरह नहीं सुनाई जा सकती है कि गोया वह एक ही है।
अनुवाद : अखिलेश सिंह
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