हम ईश्वर को किसी भी चीज़ या किसी भी व्यक्ति से जान सकते हैं—ईश्वर केवल मस्जिद या चर्च तक ही सीमित नहीं है। लेकिन इतना सब होने के बाद भी; अगर कोई इस बात को लेकर असहज है कि ईश्वर का निवास कहाँ है, तो उसे सच्चे प्रेमी के हृदय में उसे तलाशना चाहिए क्योंकि ईश्वर का निवास अक्सर वहीं होता है।
प्रभु के प्रति सच्ची भक्ति की प्रतिपत्ति ही जीवन में सच्चे पद की प्राप्ति है। वेद, शास्त्र, पुराण आदि का अध्ययन ही अपने में कोई विशेष पद-प्रद नहीं हो सकता जब तक उनके सारभूत तत्त्व को आत्मसात न कर लिया जाए। धन-दौलत और धनी राजाओं आदि के साथ मैत्री भी अपने में कोई सम्मान की बात नहीं है। जप-तप आदि से प्राप्त अणिमा आदि सिद्धियों से संसार को सताने में भी कोई गौरव की बात नहीं है।
सच्चा मानव-प्रेम सिर्फ़ तभी संभव हो सकता है जबकि सारी दुनिया में वर्गों को ख़त्म कर दिया जाएगा।
जहाँ सच्चा प्यार है, वहाँ परवाह है।
अलविदा केवल उन लोगों के लिए है, जो अपनी आँखों से प्यार करते हैं क्योंकि जो लोग दिल और आत्मा से प्यार करते हैं, उनके लिए अलगाव जैसी कोई चीज़ नहीं होती।
सच्चा प्यार भरोसा मज़बूत करता है, तोड़ता नहीं है।
सच्चा प्यार तितली की तरह नहीं होता, जो एक से दूसरी डाल पर उड़ती रहती है।